चुप
चुप चुप रहना कितना मुश्किल होता है यह जानती है केवल एक लड़की जो बचपन से ही हंसना, मुस्कुराना खिलखिलाना चाहती है पर न जाने क्यों किसी को रास नहीं आता लड़कियों का हंसना मुस्कुराना, और खिलखिलाना विवश कर दिया है उसे केवल चुप रहने के लिए चुप होती है वह उसके होठों से शब्द नहीं निकलते पर उसके अंदर ज्वार-भाटा आता-जाता रहता है उसके अंदर सिमटा रहता है ज्वालामुखी का लावा कभी भी किसी भी पल फूटने के लिए बेताब रहता है पर इन सब को दबाकर अपने आपको घोंटकर लड़कियों ने सीख लिया है चुप रहना इसलिए नहीं कि वह चुप होकर खुश है इसलिए भी नहीं कि वह चुप होकर शांति महसूस करती है बल्कि इसलिए कि लोगों की की चाहत के लिए उसने अपनी जुबान अपनी भावनाओं पर चुप्पी का ताला लगा लिया है चुप रहने के बावजूद वह जिंदा है उसके अंदर संवेदना, प्यार जिंदा है और सब कुछ को जिंदा रखे हुए उसने ओढ लिया है कफन चुप रहने का।