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Showing posts from May, 2018

जानलेवा होता है भावना से भरा होना

अगर आपके घर में या आसपास ऐसा कोई बच्चा या बच्ची, जो भावनात्मक रूप से सोच रहा है/सोच रही है तो उसे तुरंत टोकिए और उसे एक बड़ी और गंभीर जानलेवा बीमारी से बचाने की कोशिश कीजिए। भावनात्मक रूप से सोचना अपने आप में एक बहुत ही खतरनाक बीमारी है। इस बीमारी में लड़के की तुलना में लड़किया   ज्यादा पीड़ित है, क्योंकि लड़कियाँ दिल से सोचती है। आज के समय में ऐसा नहीं है बहुत सारी लड़कियाँ दिल के बजाय परिस्थिति, स्थिति, और दिमाग से सोचने लगी है। पर ऐसी लड़कियाँ जो भावना से भरी पड़ी है, उसके लिए जीवन एक श्राप बराबर है। वह किसी के साथ भी मिक्स नहीं हो पाती। उसकी अपनी एक दुनिया बन जाती है। वह प्यार, दुलार और अपनेपन में हमेशा खोई रहती है। उसे नहीं मालूम कि वह जीते जी ही मरती रहती है। उसके अंदर परिस्थितियों से सामना करने की क्षमता दिन पर दिन    कम होती जाती है। ऐसी लड़कियाँ अपने लिए तो घातक ही होती है, लेकिन अपने परिवार, आसपास के लिए भी परेशानी का कारण बनती है। वह छोटी-छोटी चीजों में उलझी रहती है। वह अगर अपनी भावनाओं को सबके समक्ष रखें, तो कोई उसकी बातों को नहीं समझेगा। अगर वो अपनी बात...

आब छि

आब छि यानी आ रहे हैं। बिहार के मिथिलांचल की भाषा। यह शब्द मैंने अपने बचपन से सुना है। मेरी माँ कहा करती थी। जब भी उनको पुकारती थी वो कहती आब छि...आबि छि। बिल्कुल ठेठ मैथिली में। वो चूंकि अपना बचपन बिहार के मिथिलांचल में बिताई थी। इसलिए मैथिली भाषा में ही बोलती थी। यह अलग बात है कि उनके जीवन का एक हिस्सा बंगाल में भी गुजरा। इसलिए वो हिंदी और बांग्ला भी समझ लेती थी। लेकिन वो केवल मैथिली में ही बोलती थी। एक ही घर में हम माँ-बेटी की भाषा अलग-अलग थी। चूंकि मेरा जन्म बंगाल में हुआ और बचपन भी यही बिता। इसलिए मैं केवल हिंदी में ही बातचीत कर पाती थी। माँ मैथिली में बोलतीं और मैं हिंदी में। माँ जब तक थी यही क्रम जारी रहा। मेरा माँ के साथ रिश्ता केवल माँ-बेटी का नहीं था। हम दोनों एक दूसरे के दोस्त थे। हमदोनों एक जगह समान थे कि हम दोनों का ही कोई और दोस्त नहीं थी। और गिने-चुने अगर होते वो इधर-उधर बिछुड़ जाते। पर हमारा रिश्ता और दोस्ताना चलता रहा। हम एक दूसरे के पूरक थे। हमारे बीच बहुत ही प्यारा रिश्ता था। माँ से बिछुड़ने का गम मुझे तब सबसे ज्यादा हुआ था , जब माँ हावड़ा वाले घर में ही रह रही थीं औ...