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Showing posts from January, 2018

रेखा जैसी बनने की चाह

रेखा। फिल्म अभिनेत्री रेखा। सिर्फ नाम ही काफी है। नाम लेते ही खुबसूरत चेहरा आँखों के सामने आ जाता है। वो रेखा जहाँ किस्मत से कुछ भी नहीं मिला। सब मिला अपनी मेहनत और लगन से। अपने अविवाहित माँ-पिता की संतान होने के दर्द के साथ ही 10 अक्टूबर 19     को जन्म हुआ। माँ –पिता दोनों ही फिल्मी दुनिया के थे, पर उससे ज्यादा आगे बढ़ने का ख्वाब लेकर चलने वालीं रेखा ने 1966 में हिंदी फिल्म में कदम रखा। सावन भादो फिल्म से। जहाँ एक मोटी, बदसूरत लड़की दिखी। अगर वही रूप-रंग रह जाता तो वो रेखा रेखा नहीं बन पातीं। लेकिन इस बात को उन्होंने न केवल समझा, महसूस किया बल्कि कारगर साबित किया। योगा और खानपान से जहाँ खुद को इतना खूबसूरत बना लीं, वहीं मेकअप कर ऐसा जादू दिखाया जो आज तक बरकरार है। जहाँ भी अगर किसी समारोह में पहुँचतीं हैं तो साड़ी में खूबसूरत सा चेहरा दमकता रहता है। कम उम्र की हीरोइनों में भी इतनी चमक नहीं जितनी 63 उम्र में रेखा के चेहरे पर। और वो भी ऐसा चेहरा जो उन्हें जन्म से नहीं मिला, बल्कि कर्म से मिला। यह इंडस्ट्री किसी भी लड़की को लड़के और प्रेम से बिना जोड़े रह ही नहीं सकता, तो र...

sulu

वर्ष 2017 जाने को तैयार है और 2018 आने के लिए बेताब है। शुक्र है कि इस साल कुछ अच्छी फिल्में देखने को मिली। वैसे बॉलीवुड की  अधिकतर फिल्में हमेशा दर्शकों को भ्रमित ही करती रही है। कभी जब संयुक्त परिवार का चलन था, तो बालीवुड की फिल्मों में भाभी-ननद, सास-बहू, भाई-भाई की लड़ाई को ही ज्यादा दिखाता है। एक समय विलेन को तो हीरो के बराबर ही माना जाता था। इसके अलावा बालीवुड की फिल्म में एक ऐसी चीज भरी रहती है, जिसे देखकर युवा वर्ग पूरी तरह से  भ्रमित हो जाते हैं। तीन घंटे की फिल्म खत्म होने के बाद भी युवा मन खोया-खोया सा  रह जाता है । जी हाँ, आपने बिल्कुल ठीक ही समझा। बालीवुड की फिल्मों में प्यार, रोमांस की भरमार होती है। फिल्मों में प्यार, रोमांस देखकर नवयुवक भ्रमित हो जाते हैं। वे अपनी जिंदगी में भी वैसा ही प्यार खोजने लगते हैं और उन्हें हाथ लगता है केवल निराशा। क्योंकि जिंदगी में फिल्मों जैसा प्यार तो हो ही नहीं सकता। पर अब लगता है इन बातों को बॉलीवुड ने भी महसूस किया और इससे अलग हटकर फिल्में बनने लगी है। वर्ष 2017 में कई ऐसी फिल्में आयीं, जिससे देखकर मन खुश हुआ। और कुछ ऐसी आन...

प्यार और टकराव

प्यार और  टकराव प्यार और टकराव जिंदगी के है पहिये यार जहाँ आज प्यार वहीं कल टकराव जहाँ कल टकराव वहीं आज प्यार दोनों चले साथ-साथ थामे एक-दूजे का हाथ एक से मन खिलखिलाये दूजे से मन घबराये जिंदगी के है पहिये यार प्यार से प्यार मिले टकराव से मन खिन्ने जिंदगी के है पहिये यार घबराना नहीं कदम बढ़ाना जैसे रात के बाद दिन अंधेरे के बाद रोशनी वैसे ही टकराव के बाद प्यार जहाँ नहीं है टकराव तो सोचना नहीं हो सकेगा वहां कभी प्यार जिंदगी के है पहिये यार जहाँ टकराहट वहीं प्यार

बच्चों की कविता

1.       रंग बेटी की फ्राक गुलाबी बेटा का जींस नीला मम्मी की साड़ी पीली और पापा का कुर्ता काला दादा जी का बाल सफेद दादी की लाठी भूरी चाचा लाये मिर्च हरी मामा खिलाये लाल आम

औरत

टुकड़ों-टुकड़ों को जोड़ते न जाने कब टुकड़ों में बंट  जाती है औरतें घर-बाहर-पति-बच्चों को संभालते-संभालते न जाने कब खुद को संभाल नहीं पाती औरत चारों ओर लोगों से घिरी हो जाने के बावजूद कितनी अकेली होती है औरत दर्द को मिटाने में जुड़ी औरत न जाने कहाँ से  कैसे जुटा लेती है दर्द ही दर्द अपने दिल में किताबों में, रसोई में रमने के बाद भी न जाने कैसे स्वाद नहीं मिल पाता उसे जीवन का जब थक कर रुकती है दो कदम जब और चाहती है कि उसके सर पर किसी का हाथ हो और पास में किसी का साथ हो तो कोई नहीं होता उसके आस-पास पर जैसे ही सूर्योदय होता है ढेर सारे काम होते हैं उसके पास अपनों के लिए पर शाम ढलने के बाद कोई नहीं होता उसके पास सबकी अपनी-अपनी दिनचर्या है सबका अपना –अपना काम है बस घर में वहीं केवल बेकार है

अब बारी पुरुष विमर्श की

जी हाँ। बहुत हो चुका स्त्री विमर्श। स्त्री विमर्श। स्त्री विमर्श। अब समय आ गया है पुरुष विमर्श का। इसमें कोई बुराई नहीं। हमें पुरुष के बारे में बातें करनी चाहिए। उनके बारे में विमर्श करना चाहिए। निश्चित रूप से मानिये इसमें आप पुरुष का कोई अपमान नहीं, बल्कि भला ही होगा। गौर कीजिए। राजा-रानी के समय को याद कीजिए। रानियों के लिए एक राजा होता था, लेकिन राजा के लिए कई रानियाँ होती थी। मर्यादा पुरुषोत्तम के पिता यानी राजा दशरथ की भी तीन रानियाँ थीं। कहानी-किस्से में भी कई रानियों की भरमार है। पर कभी भी नहीं सुना होगा कि एक रानी के दो-तीन राजा रहा होगा। जी हाँ, मैं बिल्कुल ठीक हूँ। मैं यही आपको बताना चाहती हूँ। राजा-रानी की कहानी में भी नहीं, पौराणिक कथाओं में भी नहीं। कहीं नहीं आपको मिलेगा। द्रोपदी के जरूर पाँच पति थे, पर वो भी उसकी इच्छा से नहीं। हाँ, अगर किसी जगह किसी एक लड़की या औरत का एक से ज्यादा लड़कों से संबंध है, तो उसे चरित्रहीन कह दिया जाता है। मेरी समझ में नहीं आता कि यह कैसे हुआ? पुरुष तो चाहे कितनी शादियाँ कर सकता था। उसके कितने भी संबंध हो सकते हैं। इसमें तो चरित्र का मामला नह...