रेखा जैसी बनने की चाह

रेखा। फिल्म अभिनेत्री रेखा। सिर्फ नाम ही काफी है। नाम लेते ही खुबसूरत चेहरा आँखों के सामने आ जाता है। वो रेखा जहाँ किस्मत से कुछ भी नहीं मिला। सब मिला अपनी मेहनत और लगन से। अपने अविवाहित माँ-पिता की संतान होने के दर्द के साथ ही 10 अक्टूबर 19     को जन्म हुआ। माँ –पिता दोनों ही फिल्मी दुनिया के थे, पर उससे ज्यादा आगे बढ़ने का ख्वाब लेकर चलने वालीं रेखा ने 1966 में हिंदी फिल्म में कदम रखा। सावन भादो फिल्म से। जहाँ एक मोटी, बदसूरत लड़की दिखी। अगर वही रूप-रंग रह जाता तो वो रेखा रेखा नहीं बन पातीं। लेकिन इस बात को उन्होंने न केवल समझा, महसूस किया बल्कि कारगर साबित किया। योगा और खानपान से जहाँ खुद को इतना खूबसूरत बना लीं, वहीं मेकअप कर ऐसा जादू दिखाया जो आज तक बरकरार है। जहाँ भी अगर किसी समारोह में पहुँचतीं हैं तो साड़ी में खूबसूरत सा चेहरा दमकता रहता है। कम उम्र की हीरोइनों में भी इतनी चमक नहीं जितनी 63 उम्र में रेखा के चेहरे पर। और वो भी ऐसा चेहरा जो उन्हें जन्म से नहीं मिला, बल्कि कर्म से मिला। यह इंडस्ट्री किसी भी लड़की को लड़के और प्रेम से बिना जोड़े रह ही नहीं सकता, तो रेखा उससे कैसे छूट सकती थीं। इसलिए जितनी वो खूबसूरत हैं, उतनी ही उनकी प्रेम गाथाएँ हैं। प्रेम गाथाएँ तो भरी पड़ी है, पर सब अधूरी है। हाँ, एक व्यवसायी से शादी जरूर की थीं, पर उस व्यवसायी ने न जाने क्यों आत्महत्या कर लीं। इसलिए यह प्रेम भी उनसे छिन गया। लेकिन वो अपनी चमक और अपनी साज-सज्जा में कोई कमी नहीं की। ना ही रोनी सूरत बनाकर किस्मत को कोसने लगी। बल्कि अपना कर्म यानी अभिनय करती रहीं, खूबसूरत, दो अंजानें, सिलसिला, उमराव जान, घर में जहाँ उनकी अदा लोगों को  लुभाती हैं, वहीं एक समय बाद कोई मिल गया, क्रिश जैसे फिल्मों में भी उनका अभिनय लोहा मनवा लेता है। अमिताभ बच्चन से अलगाव होने के बावजूद भी टूटन उनके चेहरे पर नहीं दिखी, और वो अपने काम को पूजा मानकर करती रहीं। निगेटिव रोल में भी खिलाड़ियों के खिलाड़ी फिल्म में दिखीं, और वहाँ भी उन्होंने अपना काम बेहतर ढंग से किया। काम के प्रति लगन, मेहनत और समर्पण की वजह से कई पुरस्कार, लाइफ टाइम एचिवमेंट, नेशनल एवार्ड उनकी झोली में आई। उन्होने अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए केवल काम का ही सहारा लिया। आज अपने 63वें जन्मदिन पर भी इतनी खूबसूरत दिख रही हैं कि लग रहा है मानों सिलसिला की रेखा ही आजकल बरकरार है। वैसी ही खूबसूरती वैसा ही प्यार उनके चेहरे पर आज भी दिखता है। मानों किसी प्यार की रंगत उनके चेहरे पर चढ़ी हुई है और वह खिलखिलाती रहती है ।

ना जाने क्यों। नाम एक होने से। या कोई कारण। मेरा उनसे खास आकर्षण रहा है। उनकी खूबसूरत, सिलसिला, दो अंजानें, घर एक मंदिर, खून भरी मांग, खिलाड़ियों की खिलाड़ी, कोई मिल गया फिल्म कितनी बार देखने के बाद भी आज तक मन नहीं भरा। मन करता है उनकी फिल्मों को देखते जाऊँ। एक समय था जब उनकी फोटो और कलेक्शन को मैं इकट्ठा करने का जुनून था। बांग्ला पत्रिका आननंलोक में छपने वाली उनकी जीवनी के लिए पत्रिका खरीदती थी और पढ़ा करती थी। शायद आज भी कुछ कापी पड़ी हो। उनके जीवन के बारे में जितना जानती, उनको पढ़ने की इच्छा उतनी प्रबल हो जाती। उनकी तरह मेहनत करने की इच्छा होती। खूबसूरत लगने की इच्छा होती। कितने संघर्ष करने के बाद उन्हें कामयाबी मिली। वैसी कामयाबी चाहती। पर उतनी मेहनत नहीं कर पाती। उनकी तरह लक्ष्य निर्धारित नहीं कर पाती। पर इच्छा जरूर है। मन करता है कि उनकी तरह सुंदर लगूँ, मुस्कुराऊँ, और सारे गिलवे-शिकवे भूलकर जिंदगी को जी लूँ। जिंदगी तो केवल बार ही मिली है, उसे इतने वर्षों  तक जैसे-तैसे बिता ली। अब मन करता है कि सदाबहार अभिनेत्री रेखा की तरह रेखा बनूँ। और चेहरे पर मुस्कुराहट, आँखों में प्यार भर कर आगे की काम करते हुए आगे बढ़ती हूँ। पता नहीं, यह इच्छा पूरी होगी कि नहीं पर इच्छा है कि कुछ ऐसा ही हो और बाकी भरी जिंदगी अच्छे से जी लूँ। मुस्कुराते हुए जी लूँ। 

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