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Showing posts from January, 2017
बात उस समय की है, जब मेरी छोटी बेटी हुई। उस दिन जैसे ही आपरेशन थियेटर से बेड पर पहुँची, और पूरी तरह से बेहोशी टूटी भी नहीं थी कि मेरे पति ने कहा कि तुम्हारे लिए फोन आया है। मैं किसी तरह फोन पकड़कर हैलो बोली। उधर से आवाज आयी, तुम घबराना नहीं। परेशान नहीं होना। किस्मत को जो मंजूर था, वही हुआ। मैं समझ नहीं पाई। फिर भी फोन पकड़कर सुन रही थी। उस तरफ से आवाज आने का सिलसिला जारी रहा। कोई बात नहीं एक लड़की थी। अब एक और हो गई। तुम घबराना नहीं और दुखी भी नहीं होना। मैं अब समझ गई। यह सांत्वना के शब्द किसलिए थे। क्योंकि मैं दूसरी बार भी बेटी को जन्म दी थी। मैं बोली – मैं बिल्कुल ठीक हूँ और परेशान नहीं हूँ। और ना ही मेरे पति ही परेशान है। हम लोगों ने जब दूसरी संतान के बारे में फैसला लिया था तब ही सोच लिया था कि चाहे बेटा हो या बेटी। दोनों का स्वागत है। हाँ, इसके पहले हमारी एक बेटी है, इसलिए अगर बेटा होता तो ठीक होता। लेकिन बेटी होने पर भी हमदोनों में से कोई भी दुखी या परेशान नहीं है। हम दोनों अपनी संतान से खुश हैं। यह पहला फोन था, उसके बाद से जैसे महीनों तक यह सिलसिला चलता रहा। हम कहीं भी जाते, दया
वर्ष 2016 जाने को तैयार है और वर्ष 2017 आने को तैयार है। सभी के मन में खुशी और उमंग भरा पड़ा है। नये वर्ष के आगमन को लेकर, कुछ नया करने को लेकर मन में उत्साह भरा रहता है। मेरा मन भी खुश है कि वर्ष 2016 अच्छे से बीता और उम्मीद करता है कि 2017 भी अच्छा से बीतेगा। पर 2017 से डर भी लगता है। डर मतलब 2017 से। जी, वैसे मुझे बचपन से ही सात अंक वाले संख्या से ही डर लगता है। मेरे मन में एक डर समाया हुआ है, सात अंक से। इसका कारण तो मैं अच्छी तरह से नहीं जानती, पर जब मैं छोटी थी तो  भी सात अंक से बहुत डरती थी और इस अंक से अपने आपको दूर रखने की कोशिश करती थी। वैसे दिन, महीना हो तो भी मेरी हालत खराब हो जाती थी। अब तो 2017 वर्ष ही आ रहा है। यानी पूरा एक साल यानी 12 महीने 17 का चक्कर। पता नहीं यह नववर्ष कैसा होगा। 365 दिन कैसे बीतेगा। वैसे इसके पहले वर्ष 2007 बीता है। वो तो पूरा साल ठीकठाक ही बीता था। लेकिन अंतिम महीने यानी नवंबर और दिसंबर का महीना कष्ट का महीना रहा। नवंबर महीने में ही माँ को कान, गले में दर्द होना शुरू हुआ और उसके बाद उनका टेस्ट पर टेस्ट और आखिर में कैंसर और कैंसर से मौत का सफर तय ह