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अहसास खुशी का… जीवन में खुशी और गम कब आ जायें, और कब चला जाये इसके बारे में कभी कोई नहीं बता सकता है। पर यह क्रम पूरे जीवन में चलता ही रहता है। वैसे मेरे जीवन में आजकल एक अलग तरह की खुशी का दौर चल रहा है। शायद यह दौर सभी के जीवन में आता होगा, पर मेरे जीवन में यह आने से अचानक इतनी खुशी हो रही है कि मन गद्गद् हो जाता है। यह खुशी है खुद के बड़े होने का, और ऐसा लग रहा है कि मेरे सामने मेरे छोटे अचानक बड़े होकर सामने खड़े हो गये हैं और मैं गद्गद् होकर खुश होकर उनको आशीष दे रही हूँ। पिछले एक-दो साल से ही ऐसा चल रहा है, पर फिलहाल काफी खुशी हो रही है। वैसे पहली बार इसका अनुभव तो 2008 में ही हुआ था। जब किंशुक का क्लास टेन का रिजल्ट फोन पर मैं पहली बार सुनी थी। खुशी के मारे आँखों से आँसू बहने लगे थे, पर जल्दी ही अपने आंसू को रोक कर सामान्य होने की कोशिश की। उसके बाद तो फिर बहुत लंबा समय हो गया। कई साल पहले जब मैं 14-15 साल की थी, तो पापा के साथ रिश्तेदारों के यहाँ (खासकर मामा) के यहाँ जाना होता था। वहाँ बहुत छोटे –छोटे बच्चे थे। किसी की मौसी, किसी की बुआ थी। फिर सब अपने-अपने में जीवन में जैसे व

मोबाइल

  एक समय ऐसा भी था जब अपनों से बात करने के लिए लोग बहुत तड़पते थे। एसटीडी बूथ पर लोग लंबी लाइन में खड़े रहते थे। एसटीडी कॉल करने के लिए घ़ड़ी के कांटों का बहुत इंतजार किया गया था। रात आठ बजे से बिल आधा आयेगा, तो रात में दस बजे के बाद उसका भी आधा। इसलिए उस समय पर फोन किया जाता था। गांव हो या शहर, सभी ने एक कॉल करने के लिए काफी मशक्कत की है। ऑफिस में काम करने वाले भी आसानी से अपने घर फोन नहीं कर पाते थे। घर पर फोन करने के लिए मौका तलाशा जाता था, कि कहीं मौका मिले और अपने घर वालों से दो शब्द बातें कर लें। फोन पर ज्यादा देर तक बात करने वाले को एक अलग ही दृष्टि से देखा जाता था। किसी के टेबल पर लैंड लाइन का होना जैसे कुबेर का खजाना मिल गया हो। जिसके घर में भी फोन यानी लैंडलाइन होता था, पड़ोसियों के सामने उसका रुतबा बहुत अच्छा होता था। पड़ोसियों के कॉल आने पर उसको बुलाकर बात करवा देना, जैसे कितना बड़ा काम होता था। इसके लिए जिसके घर में फोन होता था, उससे कभी कोई झगडा या मनमुटाव नहीं करता था। अच्छी हो या बुरी खबर, दोनों के लिए फोन बहुत बड़ा सहारा होता था। आज की तरह नहीं, कि कुछ भी हुआ, कॉल कर