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Showing posts from March, 2017
ऐ पुरुष जरा सोचो और बदलो खुद को हमारे समाज व परिवार में पुरुष का स्थान काफी महत्वपूर्ण है। एक बच्ची से लेकर वयस्क औरत तक कहीं न कहीं एक पुरुष पर ही निर्भर रहती है। समाज का सबड़े बड़ा मजबूत खंभा माना जाता है पुरुष वर्ग। महिलाओं की तरह पुरुष वर्ग में भी कुछ अच्छाइयाँ और कुछ खामियाँ हैं। अब तक महिलाओं की खामियों पर बहुत बार पेन चलाया गया है, गोष्ठियाँ की गई हैं पर पुरुष ने न तो कभी अपने गिरेवान में झांका है और न खुद को सुधारने की कोशिश की है। महिलाओं की तो जुर्रत ही नहीं हो सकती थी कि वह पुरुष को उंगली दिखाये और बताये कि तुम्हारे अंदर भी कमियाँ है। इसलिए पुरुष वर्ग काफी आत्मविश्वास से हर कार्य करते हैं, चाहे वह समाज व परिवार के लिए सही हो या नहीं। उन्हें फैसला लेने में कोई हिचकिचाहट नहीं होती है, पर एक महिला को अगर सामान्य सी बात  भी सोचनी हो तो कई बार फैसला करती हैं और फिर उसे जाँचने की कोशिश करती रहती है कि वह फैसला सही है या नहीं। पुरुष वर्ग चाहे वह भाई हो या पिता, दोस्त हो या पति सभी एक बार फैसला लेते हैं और उसे ही सब को मानना पड़ता है। जिस तरह स्त्री की कुछ आदतें हैं, वैसे ही पुरुष
महिला दिवस पर महिला की खास दोस्ती गर्मी का समय। शाम पाँच बजने वाला है। मौसम में थोड़ी ठंडक शुरू हो चुकी है। सब अपने-अपने काम में लगे हुए हैं। बच्चे स्कूल से लौट चुके हैं। घर की औरतें अपने सुबह के काम को समेटते हुए शाम के काम की तैयारी करने वाली है। इस बीच अचानक एक महिला ने सारी महिलाओं को पुकारना शुरू कर दिया। जल्दी-जल्दी सीढ़ियों के पास महिलाओं की भीड़ और उसके पीछे उछलते-कूदते झांकते बच्चे। सभी के मन में एक ही उत्सुकता। आज उसने किस रंग की साड़ी पहनी थी, कैसा सैंडिल था। लिपिस्टिक का रंग गाढ़ा या हल्का। बस कुछ ही मिनटों में आँख से ओझल होने के बाद सभी अपने –अपने किस्मत का रोना शुरू कर दी। देखो एक हमलोगों की किस्मत, और एक यह है चाहे कोई भी मौसम हो। शाम होते ही पति के साथ घूमने के लिए निकल जाती है। घर में छोटे-छोटे बच्चों की भरमार, फिर भी कोई चिंता नहीं। सज-धज कर चल दीं। अब रात में नौ बजे के बाद आयेगी, और खा-पीकर सो जायेगी। और फिर कल शाम सज-धज कर चल देगी। वाह! क्या किस्मत। यह एक दिन का रूटीन नहीं था। महीनों से महिलाएं देख रही हैं कि एक महिला को, जो 25-26 साल की होगी। सुंदर। नाम राजकुमा