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Showing posts from 2018

पुरुष दिवस : मेरे छोटेबाबु

आज पुरुष दिवस है। सोचा मेरे जीवन के किसी पुरुष के बारे में विस्तार से लिखा जाए। सोचते सोचते मैंने उनके बारे में लिखने का तय किया, जो मेरे पापा की तरह थे। पर पापा से भी ज्यादा प्यारे थे। गुस्सा करने में तो भैया से भी आगे थे, पर जब नरम पड़ते तो बिल्कुल बच्चे जैसे होते। कई बार तो उनसे डर लगता, तो कई बार वो मुझसे डर जाते। जी, वो मेरे चाचा थे। यानी मेरे पिता के भाई अर्थात् चाचा। जिन्हें हम भाई-बहन प्यार से छोटे बाबु कहा करते थे।    छोटे बाबु बिल्कुल सामान्य व्यक्ति थे। लंबा कद, मोटा शरीर और सांवला रंग। पर उनका व्यक्तित्व बहुत अच्छा था। वह सारी जिंदगी अपने भैया-भाभी के साथ गुजार दिये। वह कलयुग के लक्ष्मण थे। जहाँ एक तरफ पूरी ईमानदारी और मेहनत से पापा के मानव पत्रिका के कार्य में सहयोग निभाया करते थे, वहीं भाभी के एकमात्र देवर अपनी भाभी का हमेशा ख्याल रखा करते थे। भाभी अगर छठ पूजा का व्रत करती थी, तो देवर बड़ी श्रद्धा और लगन से छठ   पूजा का प्रसाद बनाने में साथ देते थे। जहाँ भाभी बीमार पड़ती, देवर उनकी सेवा के लिए तत्पर रहते। एक पल भी पीछे नहीं होते। वह कहते थे कि भाभी माँ बराबर होती है, तो उ

विश यू हैप्पी बर्थ डे रेखा जी

रेखा। फिल्म अभिनेत्री रेखा। सिर्फ नाम ही काफी है। नाम लेते ही खूबसूरत चेहरा आँखों के सामने आ जाता है। वो रेखा, जिन्हें किस्मत से कुछ भी नहीं मिला। सब मिला मेहनत और लगन से। अपने अविवाहित माँ-पिता की संतान होने के दर्द के साथ ही 10 अक्टूबर यानी आज ही के दिन 1954 को इस धरती पर जन्म लीं। माँ –पिता दोनों ही तमिल फिल्मी दुनिया के थे। इन्होंने भी कई तमिल फिल्में भी कीं। उससे कुछ आगे बढ़ने का ख्वाब लेकर चलने वालीं रेखा ने 1970 में हिंदी फिल्म में कदम रखा। सावन भादो फिल्म से। जहाँ एक मोटी, बदसूरत लड़की दिखी। अगर वही रूप-रंग रह जाता तो रेखा वो रेखा नहीं बन पातीं। लेकिन इस बात को उन्होंने न केवल समझा, महसूस किया बल्कि कारगर साबित किया। योगा और खानपान से जहाँ खुद को इतना खूबसूरत बना लीं, मेकअप कर ऐसा जादू दिखाया जो आज तक बरकरार है। जहाँ भी अगर किसी समारोह में पहुँचतीं हैं तो साड़ी में खूबसूरत सा चेहरा दमकता रहता है। कम उम्र की हीरोइनों में भी इतनी चमक नहीं जितनी 64 उम्र में रेखा के चेहरे पर। और वो भी ऐसा चेहरा जो उन्हें जन्म से नहीं मिला, बल्कि कर्म से मिला। यह इंडस्ट्री किसी भी लड़की को लड़के और प्र
बस केवल कृष्ण की ही कमी है बाकी तो भरे ही पड़े है समाज में धृतराष्ट्र भी दिख पड़े उस दिन बिहार में उनके साथ जरूर ही रहे होंगे भीष्म पितामह और दुर्योधन तो था ही अपने रंग में बस केवल कृष्ण की ही कमी है बाकी तो भरे ही पड़े है समाज में दुस्सासन तो चारों ओर दिख रहा था जो भैया के कहने पर सड़कों पर दौड़ रहा था बस केवल कृष्ण की ही कमी है बाकी तो भरे पड़े है समाज में कहीं दूर शकुनि भी बैठे मुस्कुरा रहे होंगे और अपनी कामयाबी पर इतरा रहे होंगे वाह क्या बात है बीत गये युग, पर नहीं बिता यहाँ का रीत आज भी महिलाओं को नंगे कर उन पर हमले कर पुरुष अपनी मर्दानगी दिखाते हैं बस केवल कृष्ण की ही कमी है बाकी तो भरे ही पड़े है समाज में
भीड़ बनना मुझे पसंद नहीं भीड़ बनकर मनमौजी करना पसंद नहीं मुझे पसंद नहीं चलती बस में आग लगा देना यह जाने बिना कि किसकी गलती से लगा है धक्का राहगीर को नहीं पसंद है मुझे मार-मार कर किसी को अधमरा कर देना नहीं है पसंद मुझे भीड़ बनकर टूट पड़ना ना समझे, ना जाने किसी पर आक्रोश निकालना मुझे नहीं पसंद है भीड़ बनकर तबाही मचाना भीड़ बनकर पथावरोध करना भीड़ बनकर किसी महिला को नग्न करना नग्न कर उस पर हमला करना नहीं है पसंद मुझे भीड़ बनकर बलात्कार पर बलात्कार करते रहना नहीं है पसंद मुझे भीड़ बनना भीड़ बनकर किसी भी रैली, समारोह के लिए निकल पड़ना भीड़ बनकर धक्का देना, धक्का देकर आगे बढ़ जाना भीड़ बनने से अच्छा है एकांत में खड़े रहना कोने में दुबके रहना अपने को भीड़ से बचाये रखना

अरे ! मोटापा तुम कब जाओगे

अरे मोटापा ! तुम तो बड़े हठी हो। जिद्दी हो। कब से टिके हुए हो। अब तो तुम चले जाओ। मैंने तो तुम्हें कभी नहीं बुलाया। तुम तो पुराने जमाने के मेहमान की तरह हो, जो आ तो गये, टिक ही गये। जाने का नाम ही नहीं ले रहे हो। पहले लोगों के यहाँ मेहमान जाया करते थे, अब तो फेसबुक और व्हाट्अप का जमाना है। आजकल के बच्चे तो मेहमान शब्द ही नहीं जानते और ना मेहमान नामक चिड़िया को पहचानते हैं। और तुम तो बड़े बेशर्म निकले। जब नहीं आये थे, तो नहीं आये। और अब आ गये तो जाने का नाम ही नहीं ले रहे। जिंदगी का एक हिस्सा तो तुम बिल्कुल कट्टी थे। कितना अच्छा लगता था। हल्का-फुल्का शरीर। उछलने –कूदने वाला शरीर। पर एक समय के बाद लोगों ने टोकना शुरू कर दिया। अरे, तुम्हारे शरीर पर मांस क्यों नहीं चढ़ता। खाना तुम खाती हो, या खाना तुमको खाता है। अरे महिलाओं ने तो कानाफूसी भी शुरू कर दी कि लगता है इसको पेट भर खाना नहीं मिलता, देखो चारों ओर हड्डी ही हड्डी दिखती है। बहुत बड़े होने तक भी मैं रिक्शा में भैया-भाभी की गोदी में बैठकर ही जाती थी। सभी यही कहते थे, इसका क्या ये तो किसी भी कोने में बैठ जायेगी। कभी-कभी खराब लगता, तो कभ

कविता केवल कविता नहीं होती

कविता कविता केवल कविता नहीं होती वो तो होती है मन की अभिव्यक्ति मन का सुख मन का दुख कविता केवल कविता नहीं होती वो तो होती है दुख में बिल्कुल आपसे चिपकी हुई आंसू की तरह बहती रहती है कागजों पर रचती रहती है एक नया संसार कविता केवल कविता नहीं होती वो तो होती है अकेलेपन की साथी हाथ थामें रहती है रास्ता दिखाती रहती है कदम बढ़ाती रहती है कविता केवल कविता नहीं होती वह जख्म को भरने  का काम करती है कभी खोलकर तो कभी ढँक कर घाव ठीक करती है कविता केवल कविता नहीं होती वो तो रोशनदान होती है चारों ओर से बंद कमरे में भी हल्की रोशनी ला देती है और उम्मीद की नयी किरण जगा जाती है कविता केवल कविता नहीं होती वो तो पूरी जिंदगी होती है सारे रंगों से भरी होती है सारे ख्वाबों से भरी होती है कविता केवल कविता नहीं होती है

जानलेवा होता है भावना से भरा होना

अगर आपके घर में या आसपास ऐसा कोई बच्चा या बच्ची, जो भावनात्मक रूप से सोच रहा है/सोच रही है तो उसे तुरंत टोकिए और उसे एक बड़ी और गंभीर जानलेवा बीमारी से बचाने की कोशिश कीजिए। भावनात्मक रूप से सोचना अपने आप में एक बहुत ही खतरनाक बीमारी है। इस बीमारी में लड़के की तुलना में लड़किया   ज्यादा पीड़ित है, क्योंकि लड़कियाँ दिल से सोचती है। आज के समय में ऐसा नहीं है बहुत सारी लड़कियाँ दिल के बजाय परिस्थिति, स्थिति, और दिमाग से सोचने लगी है। पर ऐसी लड़कियाँ जो भावना से भरी पड़ी है, उसके लिए जीवन एक श्राप बराबर है। वह किसी के साथ भी मिक्स नहीं हो पाती। उसकी अपनी एक दुनिया बन जाती है। वह प्यार, दुलार और अपनेपन में हमेशा खोई रहती है। उसे नहीं मालूम कि वह जीते जी ही मरती रहती है। उसके अंदर परिस्थितियों से सामना करने की क्षमता दिन पर दिन    कम होती जाती है। ऐसी लड़कियाँ अपने लिए तो घातक ही होती है, लेकिन अपने परिवार, आसपास के लिए भी परेशानी का कारण बनती है। वह छोटी-छोटी चीजों में उलझी रहती है। वह अगर अपनी भावनाओं को सबके समक्ष रखें, तो कोई उसकी बातों को नहीं समझेगा। अगर वो अपनी बातों को अपने अंद

आब छि

आब छि यानी आ रहे हैं। बिहार के मिथिलांचल की भाषा। यह शब्द मैंने अपने बचपन से सुना है। मेरी माँ कहा करती थी। जब भी उनको पुकारती थी वो कहती आब छि...आबि छि। बिल्कुल ठेठ मैथिली में। वो चूंकि अपना बचपन बिहार के मिथिलांचल में बिताई थी। इसलिए मैथिली भाषा में ही बोलती थी। यह अलग बात है कि उनके जीवन का एक हिस्सा बंगाल में भी गुजरा। इसलिए वो हिंदी और बांग्ला भी समझ लेती थी। लेकिन वो केवल मैथिली में ही बोलती थी। एक ही घर में हम माँ-बेटी की भाषा अलग-अलग थी। चूंकि मेरा जन्म बंगाल में हुआ और बचपन भी यही बिता। इसलिए मैं केवल हिंदी में ही बातचीत कर पाती थी। माँ मैथिली में बोलतीं और मैं हिंदी में। माँ जब तक थी यही क्रम जारी रहा। मेरा माँ के साथ रिश्ता केवल माँ-बेटी का नहीं था। हम दोनों एक दूसरे के दोस्त थे। हमदोनों एक जगह समान थे कि हम दोनों का ही कोई और दोस्त नहीं थी। और गिने-चुने अगर होते वो इधर-उधर बिछुड़ जाते। पर हमारा रिश्ता और दोस्ताना चलता रहा। हम एक दूसरे के पूरक थे। हमारे बीच बहुत ही प्यारा रिश्ता था। माँ से बिछुड़ने का गम मुझे तब सबसे ज्यादा हुआ था , जब माँ हावड़ा वाले घर में ही रह रही थीं औ

हाँ, मैंने प्रेम किया है

हाँ, मैंने प्रेम किया है बहुत ज्यादा प्रेम किया है प्रेम में डूब गयी हूँ प्रेममय हो गयी हूँ हाँ, मैंने प्रेम किया है प्रेम के गीत गुनगुनाती हूँ जीवन भर साथ देने का वादा किया है खुशी और गम में भी साथ रहने का इरादा है हाँ, मैंने प्रेम किया है प्रेम में पागल हो चुकी हूँ कुछ और दिखता नहीं केवल प्रेम ही प्रेम दिखता है मैं मीरा बन चुकी हूँ, मैं राधा बन चुकी हूँ डूबा हुआ है मेरा मन हाँ, मैंने बहुत प्रेम कर लिया है इतना कि अब तो सबको इसकी भनक भी मिलने लगी होगी जलने वाले जलने भी लगे होंगे हाँ, मैंने प्रेम कर लिया है तुमने बिल्कुल सही सुना है सही समझा है मैंने प्रेम किया है मेरे धड़कन में भी मेरे दिल में भी मेरे ख्वाब में भी मैं प्रेम करने लगी हूँ जी हाँ, मैंने खुद से प्रेम कर लिया है अपने आप से प्रेम कर लिया है इतना प्रेम किया है कि आँखें, दिल मेरे ही प्रेम में गोते खा रहा है हाँ, मैंने खुद से प्रेम कर लिया है कोई खता तो नहीं की ना ही कोई भूल मैंने तो केवल खुद से प्यार किया है और सबसे बड़ी बात है कि इसको स्वीकार

जिंदगी की रानी बनी रानी मुखर्जी ‘हिचकी’ में

हिचकी। जी हाँ, हिचकी। घबराइये नहीं। वो हिचकी नहीं, जिससे पता चले कि आपको कोई याद कर रहा है या फिर वो भी हिचकी नहीं जिससे कि लोग आपके सामने पानी बढ़ा दे। यह हिचकी रानी मुखर्जी की ‘हिचकी’ है। यानी बालीवुड की एक नयी फिल्म। एक नयी सोच पर बनी फिल्म। इस फिल्म में ‘हिचकी’ को एक बीमारी के रूप में दिखाया गया है, जिसकी वजह से रानी मुखर्जी (नैना) एक सामान्य जिंदगी नहीं जी पाती है और उसे हर जगह अलग तरह से देखा जाता है। पर उसने बड़ी सच्चाई से अपनी इस कमजोरी को ही ताकत बना लिया और एक सफलतम जिंदगी जी कर दिखा दिया। इस फिल्म के माध्यम से हम यह जरूर समझ सकते हैं कि जिस तरह रानी मुखर्जी (नैना) को हिचकी की परेशानी थी, उसी तरह से हम सब के अंदर कोई न कोई कमी और परेशानी जरूर है, और जब हम अपनी कमी और परेशानी को स्वीकार कर उसके साथ आगे बढ़ने का हौसला रखते हैं, तो दुनिया की कोई ताकत रोक नहीं सकती। बालीवुड में अपनी अमिट छाप रखने वाली अभिनेत्री रानी मुखर्जी चार साल के अंतराल के बाद इस फिल्म से बालीवुड में फिर से आई हैं। उनके दर्शक इस रोल में भी काफी पसंद किया है। इस फिल्म में रानी मुखर्जी एक सामान्य परिवार की ए

चुप

चुप चुप रहना कितना मुश्किल होता है यह जानती है केवल  एक लड़की जो बचपन से ही हंसना, मुस्कुराना खिलखिलाना  चाहती  है पर न जाने क्यों किसी को रास नहीं आता  लड़कियों का हंसना मुस्कुराना, और खिलखिलाना विवश कर दिया है उसे केवल चुप रहने के लिए चुप होती है वह उसके होठों से शब्द नहीं निकलते पर उसके अंदर ज्वार-भाटा आता-जाता रहता है उसके अंदर सिमटा रहता है ज्वालामुखी का लावा कभी भी किसी भी पल फूटने के लिए बेताब रहता है पर इन सब को दबाकर अपने आपको घोंटकर लड़कियों ने सीख लिया है चुप रहना इसलिए नहीं कि वह चुप होकर खुश है इसलिए भी नहीं कि वह चुप होकर शांति महसूस करती है बल्कि इसलिए कि लोगों की की चाहत के लिए उसने अपनी जुबान अपनी भावनाओं पर चुप्पी का ताला लगा लिया है चुप रहने के बावजूद वह जिंदा है उसके अंदर संवेदना,  प्यार  जिंदा है और सब कुछ को जिंदा रखे हुए उसने ओढ लिया है कफन चुप रहने का।
माँ को गये, दस साल हो गये। बहुत लंबा समय हो गया। कभी सोची भी नहीं थी कि माँ के बिना जी भी पाऊँगी। पर जी रही हूँ। पर मैं यह कह सकती हूँ कि इन दस वर्षों में ऐसा कोई दिन नहीं बीता होगा, जब माँ शब्द मेरे मुँह से नहीं निकला होगा। माँ खुशी में भी , दुख में भी सबसे पहले पास होती है। वो महसूस होती है। मुझे याद है बड़े भैया हमेशा कहा करते थे कि माँ का आंचल पकड़ कर रखोगी तो कभी आगे नहीं बढ़ पाओगी। सही कहा करते थे, मैं आगे नहीं बढ़ पाई। पर माँ का आँचल कभी नहीं छोड़ पाई। पर बाद के दिनों में मैं देखा करती थी कि माँ का आँचल सबसे ज्यादा बड़े भैया ही  पकड़े थे। जब माँ बहुत बीमार थी। तब कईयों बार देखी कि सुबह में माँ के पाँव के पास बड़े भैया सो रहे थे। रात में वो अपने कमरे में सोते थे, पर आधी रात में सबके सो जाने के बाद वह माँ के पास आ जाते थे, और चुपचाप वह माँ के पाँव सो जाया करते थे। माँ के साथ मेरा एक अलग प्रेम था। उनको देख लेने से, उनके पास होने से, उनके स्पर्श से इतनी अच्छी नींद आती थी, जो शायद मैं इन दस सालों में नहीं पाई। मुझे याद है कि केवल वो मेरे पास रहती थी, तो लगता था कि मैं पूरी हूँ। और अगर वो स
लोग मुझे कहते हैं मूर्ख कुछ लोग सामने तो कुछ लोग पीठ पीछे क्यों कहते हैं क्या इसलिए कि मैं लोगों से अलग-थलग रहती हूँ या इसलिए कि मैं चुपचाप सबको सुनती हूँ महसूस करती हूँ कुछ भी नहीं कहती हूँ या फिर इसलिए कि मैं शांत रहकर अपना काम केवल  अपना काम करना चाहती हूँ छल-कपट झूठ-फरेब से दूर रहती हूँ या फिर इसलिए़ क्योंकि मैं हाय-हैलो नहीं करती या फिर इसलिए कि मैं चापलूसी नहीं करती जी-हुजूरी नहीं करती लोगों से ज्यादा मिक्स नहीं होती अलग-थलग रहती हूँ या फिर इसलिए कि यहाँ सभी एक-दूसरे को मूर्ख ही कहते हैं चाहे कोई भी हो कैसा भी हो सबके लिए एक ही नाम है ऊँची कुर्सी पर बैठने वालों  को ही कोई छोड़ता नहीं तो कोई मुझे कैसे छोड़ेगा सब एक-दूसरे के लिए यहाँ मूर्ख है और एक-दूसरे को मूर्ख बताकर अपने को आगे बढ़ने की मूर्खता हर कोई कर रहा है पर सब एक दूसरे से छुप कर एक दूसरे के पीठ पीछे एक-दूसरे को मूर्ख बता रहा है

रेखा जैसी बनने की चाह

रेखा। फिल्म अभिनेत्री रेखा। सिर्फ नाम ही काफी है। नाम लेते ही खुबसूरत चेहरा आँखों के सामने आ जाता है। वो रेखा जहाँ किस्मत से कुछ भी नहीं मिला। सब मिला अपनी मेहनत और लगन से। अपने अविवाहित माँ-पिता की संतान होने के दर्द के साथ ही 10 अक्टूबर 19     को जन्म हुआ। माँ –पिता दोनों ही फिल्मी दुनिया के थे, पर उससे ज्यादा आगे बढ़ने का ख्वाब लेकर चलने वालीं रेखा ने 1966 में हिंदी फिल्म में कदम रखा। सावन भादो फिल्म से। जहाँ एक मोटी, बदसूरत लड़की दिखी। अगर वही रूप-रंग रह जाता तो वो रेखा रेखा नहीं बन पातीं। लेकिन इस बात को उन्होंने न केवल समझा, महसूस किया बल्कि कारगर साबित किया। योगा और खानपान से जहाँ खुद को इतना खूबसूरत बना लीं, वहीं मेकअप कर ऐसा जादू दिखाया जो आज तक बरकरार है। जहाँ भी अगर किसी समारोह में पहुँचतीं हैं तो साड़ी में खूबसूरत सा चेहरा दमकता रहता है। कम उम्र की हीरोइनों में भी इतनी चमक नहीं जितनी 63 उम्र में रेखा के चेहरे पर। और वो भी ऐसा चेहरा जो उन्हें जन्म से नहीं मिला, बल्कि कर्म से मिला। यह इंडस्ट्री किसी भी लड़की को लड़के और प्रेम से बिना जोड़े रह ही नहीं सकता, तो रेखा उससे कैसे छूट स

sulu

वर्ष 2017 जाने को तैयार है और 2018 आने के लिए बेताब है। शुक्र है कि इस साल कुछ अच्छी फिल्में देखने को मिली। वैसे बॉलीवुड की  अधिकतर फिल्में हमेशा दर्शकों को भ्रमित ही करती रही है। कभी जब संयुक्त परिवार का चलन था, तो बालीवुड की फिल्मों में भाभी-ननद, सास-बहू, भाई-भाई की लड़ाई को ही ज्यादा दिखाता है। एक समय विलेन को तो हीरो के बराबर ही माना जाता था। इसके अलावा बालीवुड की फिल्म में एक ऐसी चीज भरी रहती है, जिसे देखकर युवा वर्ग पूरी तरह से  भ्रमित हो जाते हैं। तीन घंटे की फिल्म खत्म होने के बाद भी युवा मन खोया-खोया सा  रह जाता है । जी हाँ, आपने बिल्कुल ठीक ही समझा। बालीवुड की फिल्मों में प्यार, रोमांस की भरमार होती है। फिल्मों में प्यार, रोमांस देखकर नवयुवक भ्रमित हो जाते हैं। वे अपनी जिंदगी में भी वैसा ही प्यार खोजने लगते हैं और उन्हें हाथ लगता है केवल निराशा। क्योंकि जिंदगी में फिल्मों जैसा प्यार तो हो ही नहीं सकता। पर अब लगता है इन बातों को बॉलीवुड ने भी महसूस किया और इससे अलग हटकर फिल्में बनने लगी है। वर्ष 2017 में कई ऐसी फिल्में आयीं, जिससे देखकर मन खुश हुआ। और कुछ ऐसी आने वाली हैं, जि

प्यार और टकराव

प्यार और  टकराव प्यार और टकराव जिंदगी के है पहिये यार जहाँ आज प्यार वहीं कल टकराव जहाँ कल टकराव वहीं आज प्यार दोनों चले साथ-साथ थामे एक-दूजे का हाथ एक से मन खिलखिलाये दूजे से मन घबराये जिंदगी के है पहिये यार प्यार से प्यार मिले टकराव से मन खिन्ने जिंदगी के है पहिये यार घबराना नहीं कदम बढ़ाना जैसे रात के बाद दिन अंधेरे के बाद रोशनी वैसे ही टकराव के बाद प्यार जहाँ नहीं है टकराव तो सोचना नहीं हो सकेगा वहां कभी प्यार जिंदगी के है पहिये यार जहाँ टकराहट वहीं प्यार

बच्चों की कविता

1.       रंग बेटी की फ्राक गुलाबी बेटा का जींस नीला मम्मी की साड़ी पीली और पापा का कुर्ता काला दादा जी का बाल सफेद दादी की लाठी भूरी चाचा लाये मिर्च हरी मामा खिलाये लाल आम