Posts

Showing posts from 2020

चलते-चलते चले गये थे मेरे भैया

सही में चलते-चलते चले गये थे मेरे भैया। चलना ही उनका मुख्य काम था। वैसे कहा जाए कि उन्हें चलने का जुनून था, तो गलत नहीं होगा। एक दिन में कितना चल लेते थे, शायद उन्हें भी पता न हो। एक समय था जब वह कई महीने चल नहीं पाये थे, तब वह कितने बेचैन थे, मैंने महसूस किया था। वो नहीं चल पा रहे थे, उनका दर्द मुझे भी बहुत था। कई महीनों बाद जब वह चले थे, तो लगा जैसे मैं भी चल पड़ी। किसी का भी चलना बहुत फायदेमंद है। पर चलते चलते चला जाना। इसे क्या कहूँ। पल भर में तो वह चले गये इस दुनिया से उस दुनिया में। ना खुद परेशान हुए और ना ही किसी को परेशान किये।  अगर वह बीमार होते, बिस्तर पर पड़े रहते तो मुझे बहुत तकलीफ होती। उससे तो अच्छा ही हुआ कि वह चलते चलते चले गये। वैसे उनकी कमी खलती है। जब तक हम है आप मेरे साथ रहेंगे। साल भर हो गए उनको गए। उनकी कमी आज भी खलती है। मुझे एक बच्चे की तरह प्यार करने वाले, मेरा ख्याल रखने वाले मेरे भैया मेरे लिए बहुत खास थे। बिन बोले कैसे मुझे समझ जाते थे, आजतक मैं नहीं समझ पाई। कैसे वह मेरी खुशी समझ जाते थे, और कैसे मेरे दुख को महसूस कर लेते थे। मैं हंसती तो वह भी हंस देते, और

कोरोना ओर हम

कोरोना काल का समय बहुत लंबा चला। पर जैसे कुछ भी हमें बहुत कुछ सिखाता है ठीक वैसे ही कोरोना काल ने भी हमें बहुत कुछ सीखा दिया है। सबसे पहले तो जो हम पूरी तरह से मशीन बन चुके थे, उससे जरूर कुछ मुक्ति मिल गयी। शुरुआत के दो महीने तो हम पूरी तरह से परिवार के साथ रहे । हमें परिवार और परिवार के हर सदस्य का महत्व समझ में आया। वैसे जिनको नहीं समझना हो उनके ऊपर शायद कुछ असर नहीं हुआ हो । लेकिन बहुतों ने तो परिवार का साथ जान लिया।  उसी तरह बीमारी और मौत का साया हमारे अंदर हमेशा बना रहा।  जिससे कई बार हम टूटे तो कई बार हम बहुत मजबूती से खड़े भी हुए । बहुत कुछ बदला । महीनों बेरोजगार भी रहे तो सर पर कफन लपेट कर भी हमने काम करते लोगों को देखा । दुनिया में भगवान है, इसको भी जान गए।  कुछ डॉक्टर ने बता दिया कि हम है आप चिंता न करे तो यह भी पता चल गया कि कुछ तो दुख में भी सौदा कर लेते है और अपनी तिजोरी भर लेते है। सबसे ज्यादा मुश्किल का दौर जिसने देखा वो हमारे घरों के नन्हे मुन्ने ने देखा। वे पूरी तरह से घर मे बंद हो गए।  खिड़की या बालकोनी से भी डरते डरते बाहर झांकते दिखे।  खेलना और स्कूल जाना तो ये मासूम
2019 में लिखने का काम बहुत कम हुआ। लिखने की इच्छा तो रही, पर साल भर मानसिक दवाब में रही। लिखने का मौका नहीं मिला। उम्मीद करती हूँ नया साल लिखने के क्रम में बेहतर होगा।