आब छि


आब छि यानी आ रहे हैं। बिहार के मिथिलांचल की भाषा। यह शब्द मैंने अपने बचपन से सुना है। मेरी माँ कहा करती थी। जब भी उनको पुकारती थी वो कहती आब छि...आबि छि। बिल्कुल ठेठ मैथिली में। वो चूंकि अपना बचपन बिहार के मिथिलांचल में बिताई थी। इसलिए मैथिली भाषा में ही बोलती थी। यह अलग बात है कि उनके जीवन का एक हिस्सा बंगाल में भी गुजरा। इसलिए वो हिंदी और बांग्ला भी समझ लेती थी। लेकिन वो केवल मैथिली में ही बोलती थी। एक ही घर में हम माँ-बेटी की भाषा अलग-अलग थी। चूंकि मेरा जन्म बंगाल में हुआ और बचपन भी यही बिता। इसलिए मैं केवल हिंदी में ही बातचीत कर पाती थी। माँ मैथिली में बोलतीं और मैं हिंदी में। माँ जब तक थी यही क्रम जारी रहा। मेरा माँ के साथ रिश्ता केवल माँ-बेटी का नहीं था। हम दोनों एक दूसरे के दोस्त थे। हमदोनों एक जगह समान थे कि हम दोनों का ही कोई और दोस्त नहीं थी। और गिने-चुने अगर होते वो इधर-उधर बिछुड़ जाते। पर हमारा रिश्ता और दोस्ताना चलता रहा। हम एक दूसरे के पूरक थे। हमारे बीच बहुत ही प्यारा रिश्ता था। माँ से बिछुड़ने का गम मुझे तब सबसे ज्यादा हुआ था, जब माँ हावड़ा वाले घर में ही रह रही थीं और मेरा हावड़ा से बांगुर स्थानांतरण हो गया। मुझे याद है कि उन दिनों माँ से फोन पर बातें करने के लिए, उनके पास जाने के लिए मैं कितनी परेशान रहा करती थी। केवल सात महीनों के बाद ही हम माँ-बेटी एक साथ हो गये, पर माँ के बिना यह सात महीने बहुत मुश्किल से बीता। इसके पहले जब एक बार माँ मुझे हावड़ा में छोड़कर मायके (बिहार) गयी थीं, तो  उस समय तो मैं केवल सात साल की थी, और मुझे बहुत तेज बुखार हो गया था। जब वह वापस आयी, तब ही जाकर बुखार उतरा। मैं शादी के बाद भी चूंकि इसी शहर में रही, इसलिए माँ का साथ हमेशा बना रहा। कभी महसूस ही नहीं हुआ कि माँ से अलग हूँ। मेरे सब सुख-दुख में माँ मेरे साथ रहतीं। उनका प्यार और आशीर्वाद मुझे हमेशा मिलता रहा। इतने लंबे समय में मैं जब भी माँ को पुकारती तो माँ तुरंत कहतीं कि आबि छि। यानि आ रहे हैं। उनका आबि छि आजतक मेरे जेहन में समाया हुआ है। मम्मी को इस दुनिया से गये साढ़े नौ साल हो गये हैं। पिछले कई दिनों से उनके ये शब्द आबि छि मेरे अंदर घूम रहा है। मुझे लग रहा है कि मैं जैसे ही माँ को याद कर रही हूँ, पुकार रही हूँ तो माँ कहती हैं कि आबि बि यानी आ रहे हैं। चलो माँ के साथ-साथ मातृभाषा को भी मैंने याद कर लिया। मुझे मैथिली भाषा का ज्ञान ना के बराबर है। लेकिन इसकी मिठास हमेशा मुझे अपनी ओर खींचती रही है। मैं अपने को मिथिलावासी ही मानती हूँ। माँ और मातृभाषा दोनों को प्रणाम।


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