मोबाइल

 

एक समय ऐसा भी था जब अपनों से बात करने के लिए लोग बहुत तड़पते थे। एसटीडी बूथ पर लोग लंबी लाइन में खड़े रहते थे। एसटीडी कॉल करने के लिए घ़ड़ी के कांटों का बहुत इंतजार किया गया था। रात आठ बजे से बिल आधा आयेगा, तो रात में दस बजे के बाद उसका भी आधा। इसलिए उस समय पर फोन किया जाता था। गांव हो या शहर, सभी ने एक कॉल करने के लिए काफी मशक्कत की है। ऑफिस में काम करने वाले भी आसानी से अपने घर फोन नहीं कर पाते थे। घर पर फोन करने के लिए मौका तलाशा जाता था, कि कहीं मौका मिले और अपने घर वालों से दो शब्द बातें कर लें। फोन पर ज्यादा देर तक बात करने वाले को एक अलग ही दृष्टि से देखा जाता था। किसी के टेबल पर लैंड लाइन का होना जैसे कुबेर का खजाना मिल गया हो। जिसके घर में भी फोन यानी लैंडलाइन होता था, पड़ोसियों के सामने उसका रुतबा बहुत अच्छा होता था। पड़ोसियों के कॉल आने पर उसको बुलाकर बात करवा देना, जैसे कितना बड़ा काम होता था। इसके लिए जिसके घर में फोन होता था, उससे कभी कोई झगडा या मनमुटाव नहीं करता था। अच्छी हो या बुरी खबर, दोनों के लिए फोन बहुत बड़ा सहारा होता था। आज की तरह नहीं, कि कुछ भी हुआ, कॉल कर दिये। पहले घर से अगर कोई स्कूल, कॉलेज, ऑफिस या किसी दूसरे शहर गया तो उसके लौटने के बाद ही बात होती थी। हम लोग कभी सोचे भी नहीं थे कि ऐसा भी कभी समय आयेगा कि फोन किसी के साथ इस तरह चिपका रह सकता है। लेकिन आज सही बात है. मोबाइन नामक यंत्र तो हम से बिल्कुल चिपक गया है। उसमें न जाने कितना कुछ है, जिससे हमारा समय बीत जाता है। अब तो अपनों की जरूरत भी नहीं पड़ती। कोरोना काल तो जैसे मोबाइल को हमारे और करीब करने के लिए ही आया है। कक्षाएं ऑनलाइन होने लगे हैं, और रिश्ते ऑफलाइन हो गये है। आज किसी का भी मोबाइल नंबर किसी को याद नहीं। लोग फोन भी बहुत कम करते हैं, बातचीत भी कम होने लगी है।   

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