बातचीत
घर से ऑफिस और ऑफिस से घर आना-जाना भी एक यात्रा है। छोटी पर दैनिक यात्रा। घर के सारे काम जल्दी-जल्दी निपटाकर, तैयार होकर ऑफिस निकलना, जहाँ थकान भर देता है वहीं ऊर्जा भी देता है। इस दौरान कई चेहरे और कई बातें होती रहती है। कुछ तो दिल दिमाग में बस जाता है तो कई बातों पर ध्यान ही नहीं जाता। कभी कुछ अच्छा लगता है तो कुछ बातें तकलीफ पहुँचा देती है। सफर के दौरान बहुत कुछ जानने और सीखने को भी मिलता है। मैं इस दौरान की कुछ बातें आप सभी के साथ शेयर करना चाहती हूँ। बात पिछले दिनों की है। ऑफिस से घर लौटने के क्रम में मैं जब ऑटो स्टैंड के पास पहुँची तो एक लड़की दौड़ती हुई ऑटो की तरफ लपकी और झट से किनारे की सीट पर बैठ गई। वह जल्दी में लग रही थी। उसके बाद एक पुरुष (55-60 साल) बैठे और किनारे की तरफ मैं बैठ गई। सामने की तरफ एक लड़का के बैठते ही चालक ने वाहन को स्टार्ट कर दिया। वह लड़की, जिसकी उम्र 23-24 के आस-पास रही होगी। देखने से लग रहा था कि अभी-अभी पढ़ाई पूरी कर नौकरी की दुनिया में प्रवेश की है। वह मोबाइल से किसी से बात कर रही थी कि एक लड़का पिछले कई दिनों से उसका पीछा कर रहा है। इसके पहले वह जिस ऑटो में थी, वह लड़का भी बैठ गया था। वह बोल रही थी कि किसी तरह से वह इस ऑटो में जल्दी-जल्दी बैठ गई और तब तक वह ऑटो स्टैंड नहीं पहुँच पाया था। इसलिए वह इस ऑटो में नहीं बैठ पाया। लडकी बहुत परेशान थी, अपने परिजन या दोस्तों को इस बारे में जोर-जोर से बातचीत कर रही थी। जब वह बातचीत कर रही थी, तो पुरुष यात्री उसकी बातों को ध्यान से सुन रहे थे और उसकी तरह बार-बार देख रहे थे, लेकिन वह बिना किसी हिचक से अपनी बातचीत जारी रख रही थी। मुझे अच्छा नहीं लग रहा था, कि सार्वजनिक तौर पर वह इस तरह बातचीत कर रही है। लेकिन उसको बुरा न लग जाये, इसलिए मैं उसको मना भी नहीं की। लेकिन थोड़ी देर बाद मुझे लगा कि उसका इस तरह बोलना सही है, ऑटो के पुरुष यात्री को भी पता चलना चाहिए कि पुरुष की इस तरह की हरकतों से लड़कियाँ कितनी परेशान होती है। उसको अच्छा नहीं लगता है, इसके बावजूद इस तरह की हरकतों को झेलना पड़ता है। थोड़ी दूर जाने पर दोनों पुरुष यात्री उतर गये,अब ऑटो में मैं और वह लड़की थी। मेरा मन किया कि उसको बोलूँ कि तुम परेशान मत हो, सब ठीक हो जायेगा। लेकिन मैं बोल नहीं पाई और अंतिम पड़ाव पर हम दोनों उतर गये और अपने-अपने रास्ते चल दिये।
दूसरी बात कल शाम की है, ऑटो में एक महिला और आठ-दस साल की लड़की चढ़ी। प्लास्टिक के बर्तन के साथ-साथ कप़ड़े के तीन बड़े-बड़े गठ्ठर ऑटो के पीछे वाले सीट के पीछे रखी और माँ-ेबेटी दोनों अपने सर से उस गठ्टरों को दबा कर रखी थी, कि कहीं वह ऑटो में सामने की तरफ गिर न जाये। लगभग दस मिनट के बाद दोनों माँ-बेटी उतर गई। बेटी बहुत छोटी थी,इसलिए बड़े-बड़े गट्ठरो को उतार नहीं पा रही थी, लेकिन भरपूर कोशिश कर रही थी। दुबली-पतली माँ भी अपने ताकत से ज्यादा हिम्मत के बल पर किसी तरह तीनों गट्ठर को उतारी। उसके बाद बेटी ने रिक्शा वाले से जहाँ जाना होगा, वहां का किराया निश्चित किया और दोनों मिलकर अपने सामान को रिक्शा में चढ़ाई और चल पड़ी। तब तक मेरा ऑटो भी चल दिया, लेकिन मैं माँ-बेटी दोनों की हिम्मत और साहस को देखती रह गई। पढ़ने की उम्र में काम में माँ का हाथ बंटा रही थी। वह अपने भविष्य के लिए जरूर कोई सुनहरा, प्यारा सपना देख रही होगी, और उसके लिए ही भरपूर मेहनत कर रही होगी या फिर पेट भर खाने के लिए।
आज की तीसरी और अंतिम बातचीत आपके साथ शेयर कर रही हूँ। वह आज की है। दो बुजुर्ग महिला ऑटो में सवार हुई आपस में बातचीत कर रही थी कि एक समय इस रुट पर रोज आना-जाना होता था। लेकिन आज लगभग दो-ढ़ाई साल बाद इस रास्ते पर आई हूँ और अच्छा लग रहा है। उन दोनों ने चालक से किराये के बारे में पूछी। चालक ने बताया कि किराया 20 रुपया प्रति व्यक्ति है। उस पर एक महिला बुरी तरह नाराज हो गई और बोलीं कि मैं दो साल बाद इस रूट पर आई हूँ, पहले किराया 14 रुपये था, वह आज 20 रुपये हो गया। दो-ढाई साल में 6 रुपये बढ़ गया। वह बोलीं कि यहाँ खुलेआम चोरी होती है, और तुम लोगों को भी चोरी, लूटने के लिए छोड़ दिया गया है। उन्होंने कहा कि क्या हमारी सैलरी इतनी तेजी से बढ़ती है, जो महंगाई इतनी तेजी से बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि यहां पढ़ी-लिखी लड़की के न्याय के लिए यहाँ कोई कदम नहीं उठाया जाता है, लेकिन उसके विपक्ष के लिए कई वकील नियुक्त किये जाते हैं। और तुम लोग किराया बढ़ा कर आम यात्रियों को परेशान करते हो।
Comments
Post a Comment