वैलेंटाइन डे

आज बचपन की कुछ बातें याद आ गई। बात यह थी कि उस समय हमारे घर में पापा ऑफिस से सीधे घर आ जाया करते थे। यानी शाम को सात बजे के करीब वह घर आ जाया करते थे। हाँ,जब वह कोलकाता से बाहर है, तो उसकी बात दूसरी। हाँ, तो मैं बोल रही थी कि शाम सात बजे से सुबह नौ बजे यानी जब उनका कार्यालय जाने का समय होता तब तक का समय हमलोग साथ में बिताते थे। उस समय पापा अपना काम, आराम, और भी बहुत कुछ किया करते थे। हमलोग पढ़ाई, घर का हल्का फुल्का काम, और खेलना जैसा बड़ा काम करते रहते थे। माँ भी अपने काम में व्यस्त रहती थी। यानी सब अपने अपने काम में व्यस्त। लेकिन सबको सबका साथ। और आसपास के चाचा-चाची,भैया-भाभी अगर शाम को घर आ गये, तो अच्छा खासा अड्डा जम जाता था। बहुत सारी बातें होती थी, पकौड़ी छनने लगता था, लूडो भी शुरू हो जाता था । घर में अपनापन, सुख का एक माहौल होता था। भरपूर बातचीत का समय मिलता था। हम सब साथ होते थे। आपस में बहुत सारी बातें होती थी। पापा के आने के बाद माँ भी रिलेक्स होती थी। उनके चेहरे पर सुकून और शांति होती थी। बच्चों के चेहरे पर खुशी और अपनेपन का माहौल होता था। सब साथ-साथ होते थे। कई बार नोंक-झोंक भी होती थी, भाई-बहनों में बहस होने लगता था, लेकिन उसका भी परिवार में अलग ही आनंद होता था। अगर कोई बीमार है, अगर किसी तरह की कोई समस्या भी होती थी, तो सब के साथ होने की वजह से कष्ट भी कम हो जाता था। ये माहौल सिर्फ मेरे घर का नहीं होता था,  बल्कि अधिकतर घर में ऐसा ही होता था। उस समय वैलेंटाइन डे, फादर्स डे, मदर्स डे, सिस्टर्स डे तक का कोई नामोनिशान नहीं था। और यहाँ तक कि जन्मदिन और सालगिरह भी बहुत कम सुनने को मिलता था। क्योंकि उस समय हर दिन हम लोग अपने मम्मी-पापा, भैया, दीदी सहित परिवार के साथ बिताते थे।पड़ोसी के साथ बिताते थे।  इसलिए हमें किसी खास दिन का इंतजार नहीं होता था। उस समय सबके चेहरे पर खुशी और प्यार देखने भर से वैलेंटाइऩ डे मन जाता था। अगर पापा मम्मी की मनपसंद खाने की चीज ले आयें तो माँ खुशी –खुशी वह खा लेती थी ,तो हो जाता था हम सब के लिए प्यार भरा दिन। लेकिन ये सब बातें बहुत पुरानी हो गई है। अब किसी के पास किसी के लिए समय नहीं है। अब सब अपने में व्यस्त थे। खुशी के लिए दिन का बंटवारा हो गया  है। अगर वह दिन खुशी मिल गई तो ठीक नहीं तो फिर अगले साल तक का इंतजार कीजिए। अब किसी के पास कोई है ही नहीं कि कुछ भी मिलजुल कर बांटे। अब सब के पास है केवल अपना मोबाइल। सारे दुख की जड़ और दुख और अकेलेपन का साथी मोबाइल । सोशल साइट्स पर सारे त्यौहार मनाइये और खुश रहिए।

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