महिला दिवस पर महिला
की खास दोस्ती
गर्मी का समय। शाम पाँच
बजने वाला है। मौसम में थोड़ी ठंडक शुरू हो चुकी है। सब अपने-अपने काम में लगे हुए हैं।
बच्चे स्कूल से लौट चुके हैं। घर की औरतें अपने सुबह के काम को समेटते हुए शाम के काम
की तैयारी करने वाली है। इस बीच अचानक एक महिला ने सारी महिलाओं को पुकारना शुरू कर
दिया। जल्दी-जल्दी सीढ़ियों के पास महिलाओं की भीड़ और उसके पीछे उछलते-कूदते झांकते
बच्चे। सभी के मन में एक ही उत्सुकता। आज उसने किस रंग की साड़ी पहनी थी, कैसा सैंडिल
था। लिपिस्टिक का रंग गाढ़ा या हल्का। बस कुछ ही मिनटों में आँख से ओझल होने के बाद
सभी अपने –अपने किस्मत का रोना शुरू कर दी। देखो एक हमलोगों की किस्मत, और एक यह है
चाहे कोई भी मौसम हो। शाम होते ही पति के साथ घूमने के लिए निकल जाती है। घर में छोटे-छोटे
बच्चों की भरमार, फिर भी कोई चिंता नहीं। सज-धज कर चल दीं। अब रात में नौ बजे के बाद
आयेगी, और खा-पीकर सो जायेगी। और फिर कल शाम सज-धज कर चल देगी। वाह! क्या किस्मत। यह
एक दिन का रूटीन नहीं था। महीनों से महिलाएं देख रही हैं कि एक महिला को, जो 25-26
साल की होगी। सुंदर। नाम राजकुमारी। जैसा नाम वैसा रूप। उस पर से अच्छी साड़ी, लिपिस्टिक
और मुस्कुराता चेहरा लेकर शाम को घूमने जाती है। चेहरे पर कभी कोई चिंता या शिकन नहीं।
घर-परिवार, बच्चे की कोई चिंता नहीं। एक बहन है, जो घर संभालती है और बच्चों को भी।
राजकुमारी दिन भर आराम करतीं और शाम को घूमने जाती, यही उनकी दिनचर्या। इसी बिल्डिंग
में रहने वाली विद्या जो बिल्कुल अलग। दिन-रात घर और बच्चों में रहने वाली। उसे बिल्डिंग
से बाहर निकलने में भी अकेले डर लगता है। केवल दाल-रोटी की चिंता में घुलती रहती। घर
में राशन, बच्चों के कपड़े के लिए रोज सुबह पति के साथ खिझ-खिझ करने की मजबूरी। तब जाकर
मिलता कुछ पैसा और उस पैसे से बच्चों के कपड़े, जूते लाती। धीरे-धीरे विद्या और राजकुमारी
में दोस्ती होने लगी। विद्या जहाँ अंदर से बहुत हिम्मती, वही राजकुमारी बाहर आने-जाने
में बहादुर। दोनों की उम्र में फासले जरूर थे, पर फिर भी दोनों की दोस्ती बढ़ती गई।
राजकुमारी को बिल्डिंग में ही एक दोस्त मिल गई और विद्या को एक ऐसा साथी जिसके साथ
बाजार करतीं, घूमती, मूवी देखने जाती। अब राजकुमारी का पति के साथ रोज घूमने जाना लगभग बंद हो चुका था और अपना अधिक समय विद्या के
ही साथ बिताती। दोनों अपने -अपने पुराने किस्से सुनातीं। विद्या कैसे गाँव से शहर पहुँची
और राजकुमारी की शादी कैसे हुई। दोनों को एक दूसरे के साथ रहना बहुत अच्छा लगता। समय
मिलते ही मूवी देखने चली जाती, यह उनदोनों का शौक बन गया। धीरे –धीरे उनकी दोस्ती गहरी
होती गयी। उनके बच्चे भी मिल गये। वो भी साथ खेलते और कुछ सालों बाद लगभग दोनों परिवार
एक परिवार जैसा हो गया। खाना-पीना, घूमना अब
सब साथ-साथ होने लगा। दोनों की दोस्ती के किस्से अब बिल्डिंग की महिलाओं के चर्चा का
खास मुद्दा बन गया। वर्षों तक चले इस दोस्ती के बाद विद्या के बड़े बेटे की शादी हुई
और फिर हुआ उसका बेटा। अब माँ के लिए एक नया फैसला लिया गया। फैसला था कि माँ अपने
बेटे-बहू के साथ रहेगी और अपने पोते की देखभाल करेगी। विद्या का बेटा उसी शहर में ही
ऑफिस से ही मिले फ्लैट में रहता था। माँ की इच्छा नहीं थी, पर फैसला तो घर के मर्द
करते हैं और उस फैसले को औरत को मानना ही होता है। वैसा ही हुआ। विद्या अपने पोते की
देखभाल में व्यस्त हो गई। राजकुमारी भी अब गृहस्थ हो चुकी थी। अपनी बेटी की शादी करवाई
और वह भी उसी में रम गयीं। दोनों सहेलियाँ एक ही शहर में रहकर अलग-अलग हो गये। कभी-कभार
सुख –दुख में शामिल होतीं और अपनी पुरानी दोस्ती
की आहें भरतीं और आँखों से बहते आँसू को पोंछतीं। वर्षों बीत गये। उम्र बढ़ती गई। अचानक
एक दिन पता चला कि विद्या को गले में कैंसर हो चुका है और अब उसकी जिंदगी कुछ ही महीनों
में सिमट गई । यह खबर मिलते ही राजकुमारी जैसे टूट गई। उसने कहा यह कैसे हो सकता है?
वह मुझे छोड़ कर नहीं जा सकती। मैं उसके बिना नहीं रह सकती। अब विद्या का घर से अस्पताल
स्थानांतरण हो चुका था। वह कभी इस वार्ड में उस वार्ड में पहुँचा दी जातीं। धीरे-धीरे
शरीर के अंग साथ छोड़ने लगे, तभी अचानक खबर आयी कि राजकुमारी को हार्ट अटैक हुआ और वह
इस दुनिया को छोड़ चुकी है। इस बात को विद्या से लगभग दो महीने तक छुपाया गया। और जब
वह बीमारी के क्रम में अस्पताल से घर आयीं, तो उनके बेटे-बहू ने बड़ी हिम्मत करके उन्हें
यह दुखद सूचना बतायीं। तब तक उनकी आवाज जा चुकी थी, उनके आँखों से सिर्फ आँसू बहने
लगे। और दो महीने बाद ही विद्या भी इस दुनिया को छोड़ कर राजकुमारी के पास हमेशा-हमेशा
के लिए चली गयीं।
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