घर

घर
लड़कियों के लिए खास रहा है घर
पर अब तक नहीं हो पाया उसका घर
एक समय घर में कैद थी लड़कियाँ
मायके से ससुराल के घर पहुँचा दी जाती थी लड़कियाँ
उसकी चारदीवारी ही उसकी जिंदगी थी
पर अब तक नसीब नहीं हुआ उसे उसका अपना घर
घर तो होता है पिता का, भाई का
ससुर का, पति का, देवर का
घर के कोने-कोने से प्यार होता है लड़कियों को
कोने में लगे जालों को हटाती रहती हैं वह
पर न जाने कैसे वह भी हट जाती है जालों के साथ
दोनों ही घरों को सजाती है लड़की
पर कोई भी घर नहीं होता उसका अपना
एक जगह आज होती है वह,
तो दूसरी जगह कल गढ़ती है वह
दोनों घरों को जोड़ती है लड़की
पर न जाने कैसे छूट जाती है लड़की
बदल गया है अब समय
अब तो चाहिए ही लड़कियों को घर
और घर का हर एक कोना
जो उसका अपना हो
इसलिए लड़कियों जागो और अपना घर
खुद बनाओ, उसमें रंग खुद भरो
एक-एक रुपये जोड़कर खरीद लो घर अपना
चाहे वह हो छोटा हो या बड़ा
पर हो तुम्हारा, केवल तुम्हारा
कोई तुम्हें कहने से पहले सोचे
कि हाँ अब लड़कियों के पास भी है घर
अपना
जहाँ सांस ले सके खुलकर
ताजगी भरी जिंदगी जी सके
गहरी नींद सो सके

और सुबह उठकर अंगड़ाई भी ले सके लड़कियाँ

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