अहसास खुशी का…
जीवन में खुशी और गम कब आ जायें, और कब चला जाये इसके बारे में कभी कोई नहीं बता सकता है। पर यह क्रम पूरे जीवन में चलता ही रहता है। वैसे मेरे जीवन में आजकल एक अलग तरह की खुशी का दौर चल रहा है। शायद यह दौर सभी के जीवन में आता होगा, पर मेरे जीवन में यह आने से अचानक इतनी खुशी हो रही है कि मन गद्गद् हो जाता है। यह खुशी है खुद के बड़े होने का, और ऐसा लग रहा है कि मेरे सामने मेरे छोटे अचानक बड़े होकर सामने खड़े हो गये हैं और मैं गद्गद् होकर खुश होकर उनको आशीष दे रही हूँ। पिछले एक-दो साल से ही ऐसा चल रहा है, पर फिलहाल काफी खुशी हो रही है। वैसे पहली बार इसका अनुभव तो 2008 में ही हुआ था। जब किंशुक का क्लास टेन का रिजल्ट फोन पर मैं पहली बार सुनी थी। खुशी के मारे आँखों से आँसू बहने लगे थे, पर जल्दी ही अपने आंसू को रोक कर सामान्य होने की कोशिश की। उसके बाद तो फिर बहुत लंबा समय हो गया। कई साल पहले जब मैं 14-15 साल की थी, तो पापा के साथ रिश्तेदारों के यहाँ (खासकर मामा) के यहाँ जाना होता था। वहाँ बहुत छोटे –छोटे बच्चे थे। किसी की मौसी, किसी की बुआ थी। फिर सब अपने-अपने में जीवन में जैसे व्यस्त हो गये। वर्षों से मिलना –जुलना भी नहीं हुआ। कोलकाता में रहते हुए पढ़ाई, नौकरी और शादी में जैसे समय बीतता गया। वर्षों बाद बेटी हुई। बेटी हुई तो लगा जैसे मेरा बचपन लौट आया। पर चूंकि मेरी बेटी थी, इसलिए बचपन के साथ साथ मेरे ऊपर जिम्मेदारियों का भी एहसास था। इसलिए शायद बहुत अच्छी तरह से बचपन को नहीं जी पायी। वैसा जैसे किंशुक (भतीजा) के साथ जी पाई थी। फिर समय बीतता गया। एक और बेटी हुई। दोनों के साथ घर, नौकरी की जिम्मेदारी ही केवल निभा पाई। हाँ, कभी-कभी कुछ पल के लिए बच्चों के साथ बचपन जी लेती, पर वह क्षणिक होता था। फिर पड़ोस में रहने वाले बाबु, फराज, अरफा जब आंटी, दीदी पुकारते तो बड़े होने का अहसास होने लगा। इसका अहसास मुझे सबसे पहले तब हुआ जब मेरी पिकी से उसकी शादी के बाद मुलाकात हुई। ठीक है वह मुलाकात बहुत थोड़ी देर के लिए था। पर मैं जैसे गले से लगाई, उसके चेहरे को प्यार की। कलेजे में ठंडक लगी तो लगा कि अचानक मुझे यह क्या हो गया। एक अद्भुत अनुभूति हुई। फिर उसके बाद फराज की पत्नी, अरफा से जब मिली उसकी शादी के बाद तो अद्भुत अनुभूति बढ़ती गई। अनुभूति एक नये रूप में अंदर समाने लगा। जो काफी सकून और शांति दे रहा था। फिर उसके बाद फेसबुक के माध्यम से कुश, सोनु और निपु, निशु को खोज निकाली तो उसका फोटो देखने, उसके साथ चैटिंग करके भी अद्भुत तृप्ति हुई। अब समझ में आ रहा है कि यह अद्भुत तृप्ति बड़े होने का अहसास है। जब हमारे छोटे कुछ अच्छा करते हैं, या कई वर्षों बाद मिलते हैं तो मन में दिल में एक अद्भुत शांति मिलती है। जैसे पिछले कई महीनों से किंशुक को बुलाती हुई, पर वह आता नहीं है। लेकिन जब एनबीबीसी में पिछले दिनों जब वह मेरे सीने से सटा और बिल्कुल बच्चे की तरह चिपक गया तो सही में मन गद्गद् करने लगा और मन कहने लगा कि देखो तुम्हारा बच्चा बड़ा हो गया है और फिर भी वह तुम्हारे पास किस तरह से चिपका हुआ है। उसमें भी गजब का सकून मिला। यानी कुल मिलाकर यह सब था बड़े होने का अहसास, बड़े होने का सुख। अब लगने लगा है कि सही में जब उम्र 40 साल पार करने लगे तो बड़प्पन अपने आप ही अपने अंदर समा जाता है। यह भी जीवन का एक मोड़ है, और इसमें भी गजब का आनंद है।


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