मैं और मेरी तन्हाई
मैं जितनी अजीब मेरी तन्हाई उससे भी अजीब। मैं जितनी उलझी, मेरी तन्हाई उससे भी ज्यादा उलझी। दोनों आपस में लड़ते रहते हैं।अक्सर मैं जीत जाती हूँ, तोकभी कभी तन्हाई भी जीत जाती है। मैं मतलब मैं। मैं मतलब अहंकार वाला मैं नहीं। मेरा वाला मैं। यानी रेखा श्रीवास्तव वाला मैं। इस मैं का कहना है कि कुछ करो,खूब घूमो, लाइफ को इंजाय करो। लेकिन वहीं मैं का एक ओर हिस्सा है वह कुछ भी करने नहीं देता।जबकि वह चारों ओर सबको सबकुछ करते देख कर बहुत खुश होता है, लेकिन हिम्मत है कि वह कुछ कर लें, या करने दें। इसी कशम्कश में मैं उलझी जाती हूँ। उलझी रहती हूँ। मैं क्या चाहतीहूँ, क्या करती हूँ, क्या नहीं करती हूँ। बहुतमुश्किल हो रहा है। और उस पर से मेरी तन्हाई। वह तो मुझे पसंद नहीं, इसलिए मुझे जीने भी नहीं देती। सोचिए कि मेरी क्या स्थिति है।
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