छुट्टी और मैं
सोची थी कि इस बार की दुर्गापूजा को मैं खास बनाऊेंगी। खूब घूमूंगी। कोलकाता के चप्पे चप्पे पर होने वाले पूजा पंडाल को देखूंगी। थोड़ा ज्यादा ही सोच रही थी, लेकिन इच्छा थी कि इस वर्ष दुर्गापूजा में खूब घुमुंगी। कोलकाता के जिस इलाके में कभी रहा करती थी,जैसे हावड़ा, बालीगंज, टालीगंज, बांगुड़ समेत न जाने कितने इलाके में घूमना था, और हाँ हमारा अपना न्यू टाउन वहाँ भी घूमना था। सोची थी कि दस दिनों की इस छुट्टी में एक दिन भी घर में नहीं रहूँगी। पहले पूजा पंडाल घूमूंगी, माँ दुर्गा के दर्शन करूँगी। लाइटिंग देखूंगी। और उसके बाद कोलकाता के कई मंदिरों में भी जाऊँगी। घूमूंगी, खूब खाऊँगी। अगर कोई मिला तो किसी केसाथ जाऊंगी, अगर कोई नहीं मिला तो अकेले ही निकल पडूंगी। लेकिन दुर्गापूजा के आते ही मैं बीमार पड़ गई और पूरे नौ दस दिन बीत गये, खांस-खाँस कर बिस्तर पर पड़ी रही।बुखार में तड़पती रही। शुरुआत में दवा न खा की जिद्द पर पड़ी रही, बाद में दवाइयों का हीसहारा लेना पड़ा। बस यूँ ही बीत गया मेरा छुट्टी और रफूचक्कर हो गया मेरा घूमने का प्रोग्राम। इसी का नाम जिंदगी है।
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