आज 17 मई है

आज 17 मई है। मम्मी-पापा की सालगिरह है, पर सबसे दुख की बात है कि आज दुनिया में दोनों ही नहीं है। पापा 2002 के सितंबर महीने में और माँ 17 फरवरी 2009 में एक अलग दुनिया में चली गयीं। उम्मीद करती हूँ कि अभी दोनों जहाँ भी होंगे, साथ होंगे और खुश होंगे। आप दोनों को सालगिरह की बहुत-बहुत बधाई। पापा अपने सालगिरह को लेकर काफी उत्साह से भरे रहते थे। ऐसे मौके पर माँ, पापा की तुलना में कम खुशियाँ दिखा पाती थीं। वह अपनी खुशी और दुख दोनों ही अपने तक सीमित रखती थीं। पापा का खुश होना, फोटो खिंचवाना, कुछ खास भोजन की चाह रखना, हम सब के लिए मिठाई लाना आज भी याद है। पापा को कभी गुस्सा करते नहीं देखी। उत्तेजित होते भी नहीं देखी। उनका व्यक्तित्व हंसमुख और जिंदादिल था। लोग उन्हें मस्तमौला कहते थे। लेकिन धुन के पक्के थे। वह जो तय करते थे, वही करते थे। उनका कहना था कि सुनो सब की, करो मन की। वह बहुत मिलनसार थे। वहीं, माँ के जीवन का फैसला पापा करते थे, उसके बाद बड़े भैया करने लगे। लेकिन कुछ फैसले वह खुद करती थी। मसलन, कब उन्हें फिल्म देखने जाना है, तो कब उन्हें बाजार जाना है। खाने और घूमने की शौकीन थी, तो वहीं स्वादिष्ट भोजन बनाना उनका प्रिय काम था। इस बाबत पापा कहते थे कि तुम्हारी मम्मी के हाथ में जादू है। वह हर काम में निपुण थीं। रसोई, घर संभालने, बाजार करने के साथ –साथ वह कंप्यूटर पर गेम खेलने में भी माहिर हो गई थीं। पोते के साथ उनका खूब तालमेल था। दोनों के बीच बहुत गहरा रिश्ता था। गहरा रिश्ता तो मेरे साथ भी था, पर कभी दिखाई नहीं। मम्मी-पापा की कुछ आदतें मिलती थीं, तो कुछ आदतें एकदम विपरीत थीं। सबसे बड़ी बात है कि दोनों ही अच्छे इंसान थे। मन के सच्चे थे। दोनों ही खाने-पीने के साथ-साथ घूमने के शौकीन थे। झूठ, छल-कपट से दूर थे। मददगार थे। अपने-अपने काम में निपुण थे। सबसे बड़ी बात है कि अपने छोटे से समाज, रिश्तेदारों में दोनों की इज्जत थी। सम्मान था। आज भी उनको लोग याद करते हैं। जुगुत भैया, बद्री भैया, इंदु शेखर जैसे काफी लोगों की उन दोनों ने मदद कीं। अपने पास पर्याप्त जगह नहीं होने के बावजूद कई लोगों को अपने घर में रहने की व्यवस्था की। कई लोगों की आर्थिक मदद भी की। उन दोनों ने कभी अमीर-गरीब, ऊंच-नीच, जाति –धर्म को नहीं माना। घर में आराम से किसी भी धर्म के लोग आ सकते थे, और भोजन –पानी कर सकते थे। मम्मी वास्तव में गुण की खान थी। स्वेटर बनाना उनके प्रिय काम में से एक था। कितने लोगों को स्वेटर बुन कर दी थी। मेहनत करने में कभी भी पीछे नहीं हटीं। वहीं कुछ ऐसे भी मामले थे, जहाँ दोनों के विचार नहीं मिलते थे। माँ हाउस वाइफ थी, इसलिए वह आर्थिक रूप से पूरी तरह पापा पर निर्भर थीं। और पापा चाहे अपना कितना भी खर्च कर लें, कितनी भी महंगी चीजें खरीद लें, लेकिन मम्मी को रुपये देने के नाम पर घर में खींच-खींच होती थी। यह बात मुझे बहुत चुभती थी। वे दोनों अच्छे पति-पत्नी थे या नहीं, अच्छे माता-पिता थे या नहीं. मुझे मालूम नहीं। लेकिन दोनों दिल के बहुत अच्छे थे और कुछ हद तक अच्छी जिंदगी जिये। लेकिन एक जगह पीछे रह गय़े, वह अपने बच्चों के लिए बहुत कुछ ज्यादा नहीं कर पाये। यह उनके बच्चों की किस्मत थी, या इन दोनों की। नहीं मालूम, लेकिन जीवन का यह एक बड़ा कड़वा सच है कि उनके बच्चे अपने पांव पर मजबूती से खड़े नहीं हो पाये। इस एक मामले को छोड़कर हर मामले में अव्वल थे। आज सुबह से ही उन दोनों की बहुत याद आ रही है। अभी भी बहुत कुछ याद आ रहा है, लिखने का मन कर रहा है। लेकिन कितना लिखूँ, क्या-क्या लिखूँ। समझ नहीं पा रही हूँ। सोचती हूँ कि अब फिर कभी उन दोनों के बारे में लिखूँगी। आप दोनों को शादी की सालगिरह की बहुत-बहुत बधाई। आप दोनों जहाँ भी रहें, खुश रहें, यहीं भगवान से प्रार्थना है। अगले जन्म में भी मुझे मम्मी-पापा के रूप में आप दोनों ही मिलें। आप दोनों की परवरिश में कुछ खास बात तो थी कि आज मैं भी आपके दिखाये रास्ते पर चल रही हूँ और हमेशा चलना चाहती हूँ। आप दोनों को मेरा प्रणाम।

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