प्रेसिडेंसी में आठ साल का सुहाना सफर

कल 4 जनवरी 2024 है। यानी कल मुझे प्रेसिडेंसी विश्वविद्यालय से जुड़े 8 साल हो जायेंगे। आठ साल पहले मैं यहां के हिंदी विभाग से जुड़ी थी। वहां का परिवरा बहुत अच्छा था। माँ बनने के बाद मेरे जीवन की यह दूसरी पारी की शुरूआत थी। पहले पारी में मैं हिन्दी अखबारों की दुनिया से जुड़ी थी। महानगर से होते हुए प्रभात खबर की यात्रा की थी। अखबार की दुनिया में ग्लैमर, नाम, पहचान बहुत कुछ था। चूंकि मैंने रिपोर्टिंग भी की थी, फीचर भी जमकर लिखा था। फिल्मी दुनिया पर भी लिखा। इसलिए मुझे वह सफर बहुत अच्छा लगा था। लेकिन पारिवारिक जिम्मेदारियों की वजह से उस दुनिया को अलविदा कहना पड़ा। लगभग सात साल बाद 2014 में दूसरी पारी की शुरूआत फिर से अखबार की दुनिया से की थी, लेकिन पारिवारिक जिम्मेदारियों के लिए अखबार में नौकरी करना नामुमकिन लगा। इसलिए समझ में आ गया कि पारिवारिक जिम्मेदारियों के लिए अखबार की दुनिया को छोड़कर कहीं न कहीं सुबह दस से शाम पांच –छह बजे तक की ही नौकरी करनी पड़ेगी। इसी क्रम में 2016 में प्रेसिडेंसी से जुड़ गई। यह मेरे लिए सौभाग्य की बात थी। जहां लोग पढ़ने का सपना देखते हैं, वहां मुझे जुड़ने का मौका मिला। हिंदी विभाग मेरा एक और परिवार बना। पारिवारिक माहौल में काम करने का सुख ही अलग होता है। यहां की सबसे बड़ी खासियत थी वहां के विद्यार्थी। अपनी नन्हीं-नन्हीं बेटियों को घर पर पापा के पास छोड़ जाने से जो मन के एक कोने में जो दुख रहता था, वह उन विद्यार्थियों से कुछ हद तक भर जाता था। एक बात कहना चाहूंगी कि विद्यार्थी जीवन तो वैसे ही बहुत अच्छा होता है, लेकिन यहां के विद्यार्थी तो हीरे थे, सर्वगुण सम्पन्न थे। उनके साथ रहने से मन में उत्साह, शरीर में ऊर्जा आती थी। उन लोगों से बहुत कुछ सीखने को मिला। स्मार्ट मोबाइल की दुनिया को समझने में उन लोगों ने बहुत मदद की। सबसे बड़ी बात है कि जितना साथ काम करने वाले अच्छे थे, उतने ही अच्छे एक-एक विद्यार्थी। किसी एक का नाम लेकर मैं भेदभाव नहीं करना चाहती। लेकिन एक कक्षा थी यूजी सिक्स। इसके सारे विद्यार्थी मोती की तरह थे। सब के सब कीमती। पढ़ाई में अव्वल, स्वभाव में मृदुल, नृत्य में पारंगत, कला में निपुण। फिर साल 2019 में अचानक मेरा स्थानांतरण हो गया और मुझे विश्वविद्यालय के सेंट्रल एंड रिसीविंग डिस्पेच विभाग (सीआरडी) में भेज दिया गया। यह मेरे लिए बहुत बड़ा झटका था, जनवरी 2016 से जुलाई 2019 तक का सफर हिंदी विभाग में बहुत ही सुखद बीता था। इसके बाद जुड़ी सीआरडी विभाग से । कई दिनों के बाद ही यह विभाग और यहां के साथी भी अच्छे लगने लगे। काम करने में आनंद आने लगा। बहुत सारी खुशियाँ हमने साथ बांटी। खाने-पीने का भी लुफ्त उठाई। कोरोना महामारी के समय भी सीआरडी में ही जुड़ी रही, उसके बाद फिर 11 नवंबर 2022 को मेरा स्थानांतरण कर दिया गया। इस बार मुझे भेजा गया ओएसडी विभाग में। यानी ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी के विभाग में। यह स्थानांतरण एक अलग तरह का स्थानांतरण था। इस बार हुआ यूं कि विश्वविद्यालय में सारे स्थायी नियुक्ति वाले रह गये और जो अस्थायी रहे उन्हें ओएसडी विभाग में भेजा गया। अब चार लोग यहां एक साथ काम कर रहे हैं, जो अस्थायी है। कभी कभार हम अपनी किस्मत पर दुखी हो लेते हैं, तो कभी-कभी अपने पर इतरा लेते हैं कि आखिरकार हम प्रेसिडेंसी से तो जुड़े हैं। अगर प्रेसिडेंसी हम सब को अच्छे से स्वीकार कर लेता तो हमारी खुशी ही अलग होती। कभी-कभार हमारा आत्मविश्वास कम होने लगता है, लेकिन फिर आत्मविश्वास से हम भर जाते हैं और अपने कर्म में लग जाते हैं। यहीं सोचते हैं कि जिंदगी ही तो स्थायी नहीं, तो फिर नौकरी की चिंता क्यों। फिर मैं सोचती हूँ कि भगवान हमेशा मेरे लिए कुछ अच्छा ही करेंगे और इसी विश्वास के साथ जिंदगी आगे बढ़ रही है। और हाँ, मुझे एक बात और जो मुझे अपने बारे में अच्छी लगी कि मैं हिंदी विभाग से होते हुए ओएसडी तक के इस सफर में बहुत लोगों से मिल पाई, उनका स्नेह पाई, उन सबसे बहुत कुछ सीख पाई। मुझे लगता है कि इस विश्वविद्य़ालय में मैं भाग्यशाली हूँ कि मैं ज्यादा से ज्यादा लोगों के संपर्क में आ सकी और ज्यादा से ज्यादा काम सीख पाई। 4 जनवरी 2016 से 3 जनवरी 2024 तक का सफर अच्छा ही रहा, भगवान करें कि आगे का सफर इससे भी ज्यादा अच्छा और प्यारा हो। यादें अच्छी अच्छी बनें।

Comments

Popular posts from this blog

बातचीत