महिलाओं का अश्लील प्रदर्शन और समाज


महिलाओं का अश्लील प्रदर्शन के लिए मैं पूरी तरह से फिल्मी दुनिया को ही जिम्मेदार मानती हूँ। फिल्मों के साथ-साथ टीवी के विज्ञापन जगत में भी अश्लीलता बढ़ती जा रही है। एक मामूली-सी चीज के विज्ञापन के लिए एक सुंदर सी अभिनेत्री हो या सामान्य चेहरा अंग प्रदर्शन के लिए तैयार दिखती है। किसी भी चीज का विज्ञापन हो, शरीर जरूर दिखाया जाता है। फिल्मों में भी यही स्थिति है। कई सीनों को तो जबरन ठुंसा जाता है। माना जाता है कि इससे ज्यादा ख्याति होगी। लेकिन मेरा मानना इसके विपरीत है। मैं नहीं मानती हूँ कि अश्लीलता की ही वजह से आपको काम मिलेगा। वहीं दूसरी तरफ कॉमेडी कार्यक्रम में भी अश्लीलता दिखती है। शरीर की अश्लीलता के साथ-साथ  भाषाएँ की भी अश्लीलता बढ़ती जा रही है। कई बार ऐसे दिअर्थी शब्दों का प्रयोग हो जाता है, कि आँखें चुराने पड़ती है। अश्लील प्रदर्शन का असर समाज में तेजी से बढ़ता जा रहा है। स्कूल-कॉलेज में पढ़ने वाली लड़कियाँ सबसे ज्यादा प्रभावित होती है। आजकल फटे जीन्स का चलन चल रहा है। मैं तो इसे देखकर अवाक हो जाती हूँ। जहाँ एक तरफ लड़कियाँ पढ़ रही है, जागरूक हो रही है। जहाँ उन्हें अपने शरीर को ढँकने की कोशिश करनी चाहिए। शालीनता भरी बातें करनी चाहिए। वहीं आजकल लड़कियाँ फटे जींस पहनकर घुमने में मॉडर्न महसूस कर रही हैं। ये लड़कियाँ फैशन के नाम पर अश्लीलता को अपनाती जा रही हैं। बाजार में वैसी ही ड्रेस बिकती है जिससे अंग प्रदर्शन होता है। उन्हें पता ही नहीं है कि यह एक तरह से ड्रग्स की तरह है, जो हमारे अंदर घुलता जा रहा है। इसकी काफी बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। पड़ेगी क्यों, पड़ रही है। बलात्कार जैसी घिनौनी हरकतें के लिए भी कहीं न कहीं अश्लीलता भी जिम्मेदार  है।  सोचिए अगर हमारे समाज में छोटी सी बच्ची हो या अधेड़ महिला बलात्कार की शिकार हो जाती है तो  ऐसी स्थिति में हम अश्लीलता को अपनाते हैं तो सीधे-सीधे कह सकते हैं कि हम खुद ही अपने पांव पर कुल्हाड़ी मारते हैं।
इसे रोकने के लिए सरकारी व गैरसरकारी कई नियम बनाये गये हैं लेकिन वे केवल कागज पर ही सीमित है। नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो द्वारा इकट्ठे किए गए आंकड़ों के अनुसार वर्ष 1999 में महिलाओं के अश्लील प्रदर्शन निरोधक अधिनियम के तहत केवल 222 मामले दर्ज हुए। वर्ष 1986 में फिल्मों, विज्ञापनों, किताबों में महिलाओं के बढ़ते अश्लील प्रदर्शन पर रोक लगाने के लिए महिलाओं का अश्लील प्रदर्शन निरोधक अधिनियम बनाया गया था। तीन-चार वर्ष तक तो खुद पुलिस को ही इस कानून की ठीक प्रकार से जानकारी नहीं थी। ब्यूरो में इस कानून सेसंबंधित आंकड़े ही वर्ष 1989 में जमा करने शुरू किए गए। लेकिन ये आंकड़े भी आधे-अधूरे दर्ज होते रहे। कई राज्यों से इन मामलों की कोई भी जानकारी नहीं भेजी जाती थी। वर्ष 1995-96 में ब्यूरो में लगभग सभी राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेशों ने इस कानून के तहत मामलों की जानकारी भेजनी तो शुरू कर दी लेकिन जानकारी के रूप में 'जीरो'  भेजा जा रहा है। वर्ष 1999 में इस कानून के तहत 25 राज्यों में से केवल सात राज्यों ने मामले दर्ज किए हैं बाकी राज्यों के आंकड़े जीरो के रूप में ब्यूरो में पहुंचे हैं। दूसरी तरफ 7 केंद्र शासित प्रदेशों जिसमें दिल्ली को भी शामिल किया गया है, में से केवल दिल्ली में ही इस दौरान 10 मामले इस कानून के तहत दर्ज हुए हैं बाकी प्रदेशों से जीरो की ही जानकारी मिली है। सिर्फ कानून बनाने से ही उस पर अमल करने से ही कुछ होगा।

अत: मेरा मानना है कि अश्लीलता को रोकने के लिए हमें खासकर महिलाओं को ही सशक्त कदम उठाना चाहिए। उन्हें अपने बच्चों को भी बताना चाहिए कि अश्लीलता को अपनाना कहीं भी आधुनिकता नहीं है। आधुनिकता मन से होनी चाहिए, कर्म से होनी चाहिए लेकिन अश्लीलता नहीं होनी चाहिए। नहीं तो हमारा समाज धीरे-धीरे अश्लीलता के गर्त में डूब जायेगा। 

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