बात उस समय की है, जब मेरी
छोटी बेटी हुई। उस दिन जैसे ही आपरेशन थियेटर से बेड पर पहुँची, और पूरी तरह से बेहोशी
टूटी भी नहीं थी कि मेरे पति ने कहा कि तुम्हारे लिए फोन आया है। मैं किसी तरह फोन
पकड़कर हैलो बोली। उधर से आवाज आयी, तुम घबराना नहीं। परेशान नहीं होना। किस्मत को जो
मंजूर था, वही हुआ। मैं समझ नहीं पाई। फिर भी फोन पकड़कर सुन रही थी। उस तरफ से आवाज
आने का सिलसिला जारी रहा। कोई बात नहीं एक लड़की थी। अब एक और हो गई। तुम घबराना नहीं
और दुखी भी नहीं होना। मैं अब समझ गई। यह सांत्वना के शब्द किसलिए थे। क्योंकि मैं
दूसरी बार भी बेटी को जन्म दी थी। मैं बोली – मैं बिल्कुल ठीक हूँ और परेशान नहीं हूँ।
और ना ही मेरे पति ही परेशान है। हम लोगों ने जब दूसरी संतान के बारे में फैसला लिया
था तब ही सोच लिया था कि चाहे बेटा हो या बेटी। दोनों का स्वागत है। हाँ, इसके पहले
हमारी एक बेटी है, इसलिए अगर बेटा होता तो ठीक होता। लेकिन बेटी होने पर भी हमदोनों
में से कोई भी दुखी या परेशान नहीं है। हम दोनों अपनी संतान से खुश हैं। यह पहला फोन
था, उसके बाद से जैसे महीनों तक यह सिलसिला चलता रहा। हम कहीं भी जाते, दया के पात्र
होते। कोई सामने दया दिखाता तो पीछे से कहता कि देखो भाग्य एक बेटी पहले थी, और फिर
दूसरी हो गई। और हद तो तब हो गई जब पिछले साल जब मैंने नौकरी ज्वाइन की, तो मैंने एक
रिश्तेदार को इसकी सूचना देने के लिए फोन की।
मैंने फोन पर जैसे ही कहा कि मुझे आपलोगों को एक गुड न्यूज देनी है, तो उधर से जवाब
आया कि क्या बेटा हुआ। क्या आपका परिवार पूरा हो गया। मुझे बहुत अजीब लगा कि क्या दो
बेटियों से बने परिवार से बना परिवार क्या पूरा नहीं होता। क्या बेटा ही परिवार पूरा
करता है।
हमारे समाज की अजीबो-गरीब स्थिति
है। सबसे पहले अगर किसी दंपति को पहली संतान लड़का होता है, तो जैसे माना जाता है वह
बहुत भाग्यशाली है। वो दूसरा मौका नहीं लेना चाहते। अगर दूसरी संतान लड़की हो गई तो
पहले पाये गये बेटे की खुशी कम हो जायेगी। वो जैसे इस दुनिया के सबसे तीरअंदाज है।
एक ही झटके में विजय प्राप्त कर ली है। वहीं दूसरे तरह का परिवार है, जिसकी पहली संतान
बेटी और दूसरी संतान बेटा है तो पूरी तरह से पूरा परिवार है। उसे सब सुख प्राप्त है।
उसे अब किसी चीज की जरूरत नहीं है। वो परिवार भी खुद को पूरा महसूस करता है, और दूसरे
लोग भी उसे पूरा समझते हैं। तीसरा दर्जा वो परिवार है जिसके पहली और दूसरी संतान दोनों
ही लड़का है। वो एकदम फिट। यानी पूरा 100 प्रतिशत परिवार। कहीं से भी किसी तरह की कमी
नहीं। परिवार तो पूरा के साथ हरा-भरा। कहीं भी किसी चीज की जरूरत नहीं। एक लड़की के
माता-पिता अपने आपको पूरी तरह से उसके साथ खुश रहते हैं। वह घर की राजकुमारी होती है।
परिवार के सारे लोग उसे दुलार और प्यार करते हैं। पर दूसरे संतान की उम्मीद करते हैं
और कहते हैं कि इसके होने पर हमें कोई दुख नहीं, लेकिन अगर लड़का हो जाये तो अच्छा होगा।
ठीक वैसे ही दो बेटियों के पिता-माँ तो दया के पात्र बन जाते हैं, और अधूरा परिवार
माना जाता है। कहा जाता है कि भगवान ने दो-दो बेटियाँ दे दी। बाप-रे-बाप पढ़ाना, लिखाना
और शादी-ब्याह करने में हालत खराब हो जायेगी। और कुछ परिवार ऐेसे हैं, जो बेटे के जन्म
के चक्कर में तीन-तीन बेटियों को जन्म दे देते हैं। उन पर तो जैसे पहाड़ टूट पड़ता है।
आज के समय में उस दंपति को अव्वल दर्जे का मूर्ख की पदवी तो आराम से मिल जायेगी। इसके
बाद मुसीबत लड़कियों की भी। जहाँ ये लड़कियाँ एक साथ लोगों को दिख गई, तो लोग शुरू हो
गये। क्या होगा इनका। कैसे पढ़ेंगे। कौन इससे शादी करेगा। पिता कैसे इन तीनों को पार
लगायेगा। मैं एक बात कहना चाहती हूँ कि लड़कियाँ कोई नाव नहीं जिसे पार लगाना पड़ेगा।
वो तो हवाई जहाज है, तो खुद ही आसमान में उड़ कर सात समुद्र पार करेगी और अपने साथ लोगों
को भी सैर करायेगी।
Comments
Post a Comment