चलते-चलते चले गये थे मेरे भैया

सही में चलते-चलते चले गये थे मेरे भैया। चलना ही उनका मुख्य काम था। वैसे कहा जाए कि उन्हें चलने का जुनून था, तो गलत नहीं होगा। एक दिन में कितना चल लेते थे, शायद उन्हें भी पता न हो। एक समय था जब वह कई महीने चल नहीं पाये थे, तब वह कितने बेचैन थे, मैंने महसूस किया था। वो नहीं चल पा रहे थे, उनका दर्द मुझे भी बहुत था। कई महीनों बाद जब वह चले थे, तो लगा जैसे मैं भी चल पड़ी। किसी का भी चलना बहुत फायदेमंद है। पर चलते चलते चला जाना। इसे क्या कहूँ। पल भर में तो वह चले गये इस दुनिया से उस दुनिया में। ना खुद परेशान हुए और ना ही किसी को परेशान किये।  अगर वह बीमार होते, बिस्तर पर पड़े रहते तो मुझे बहुत तकलीफ होती। उससे तो अच्छा ही हुआ कि वह चलते चलते चले गये। वैसे उनकी कमी खलती है। जब तक हम है आप मेरे साथ रहेंगे। साल भर हो गए उनको गए। उनकी कमी आज भी खलती है। मुझे एक बच्चे की तरह प्यार करने वाले, मेरा ख्याल रखने वाले मेरे भैया मेरे लिए बहुत खास थे। बिन बोले कैसे मुझे समझ जाते थे, आजतक मैं नहीं समझ पाई। कैसे वह मेरी खुशी समझ जाते थे, और कैसे मेरे दुख को महसूस कर लेते थे। मैं हंसती तो वह भी हंस देते, और मेरे गम से वह भी दुखी हो जाते। माँ-पापा की तरह मेरे साथ थे। अब वह भी मम्मी पापा के पास है। आप जहाँ रहिये खुश रहिये। आप मेरे लिए अतीत होते जा रहे हैं, और मैं वर्तमान में जी रही हूँ। पर भैया हमारे बीच अब शायद पहले से भी ज्यादा गहरा रिश्ता हो गया है। अब किसी को हमारे रिश्ते की भनक तक नहीं पहुँचेगी। मैं आपसे प्यार करती रहूँगी और आप मुझ से। अब हम दोनों हमेशा साथ रहते हैं। घंटों बातें कर सकते हैं। बस एक दूसरे को स्पर्श नहीं कर सकते। पर सांस लेते ही महसूस कर लेते हैं। भैया अगर मुझसे कुछ गलती हुई होगी, तो मुझे माफ कर दीजियेगा। अगले जन्म में फिर हम मिलेंगे, और प्रेम करेंगे। निस्वार्थ प्रेम। भाई-बहन का प्रेम। बड़े-छोटे का प्रेम। खुशी खुशी का प्रेम। प्रेम कितना सुंदर होता है। कितना सलोना होता है। उसमें कोई स्वार्थ नहीं होता।

Comments

Popular posts from this blog

प्रेसिडेंसी में आठ साल का सुहाना सफर

बातचीत