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चलते-चलते चले गये थे मेरे भैया

सही में चलते-चलते चले गये थे मेरे भैया। चलना ही उनका मुख्य काम था। वैसे कहा जाए कि उन्हें चलने का जुनून था, तो गलत नहीं होगा। एक दिन में कितना चल लेते थे, शायद उन्हें भी पता न हो। एक समय था जब वह कई महीने चल नहीं पाये थे, तब वह कितने बेचैन थे, मैंने महसूस किया था। वो नहीं चल पा रहे थे, उनका दर्द मुझे भी बहुत था। कई महीनों बाद जब वह चले थे, तो लगा जैसे मैं भी चल पड़ी। किसी का भी चलना बहुत फायदेमंद है। पर चलते चलते चला जाना। इसे क्या कहूँ। पल भर में तो वह चले गये इस दुनिया से उस दुनिया में। ना खुद परेशान हुए और ना ही किसी को परेशान किये।  अगर वह बीमार होते, बिस्तर पर पड़े रहते तो मुझे बहुत तकलीफ होती। उससे तो अच्छा ही हुआ कि वह चलते चलते चले गये। वैसे उनकी कमी खलती है। जब तक हम है आप मेरे साथ रहेंगे। साल भर हो गए उनको गए। उनकी कमी आज भी खलती है। मुझे एक बच्चे की तरह प्यार करने वाले, मेरा ख्याल रखने वाले मेरे भैया मेरे लिए बहुत खास थे। बिन बोले कैसे मुझे समझ जाते थे, आजतक मैं नहीं समझ पाई। कैसे वह मेरी खुशी समझ जाते थे, और कैसे मेरे दुख को महसूस कर लेते थे। मैं हंसती तो वह भी हंस देते,...

कोरोना ओर हम

कोरोना काल का समय बहुत लंबा चला। पर जैसे कुछ भी हमें बहुत कुछ सिखाता है ठीक वैसे ही कोरोना काल ने भी हमें बहुत कुछ सीखा दिया है। सबसे पहले तो जो हम पूरी तरह से मशीन बन चुके थे, उससे जरूर कुछ मुक्ति मिल गयी। शुरुआत के दो महीने तो हम पूरी तरह से परिवार के साथ रहे । हमें परिवार और परिवार के हर सदस्य का महत्व समझ में आया। वैसे जिनको नहीं समझना हो उनके ऊपर शायद कुछ असर नहीं हुआ हो । लेकिन बहुतों ने तो परिवार का साथ जान लिया।  उसी तरह बीमारी और मौत का साया हमारे अंदर हमेशा बना रहा।  जिससे कई बार हम टूटे तो कई बार हम बहुत मजबूती से खड़े भी हुए । बहुत कुछ बदला । महीनों बेरोजगार भी रहे तो सर पर कफन लपेट कर भी हमने काम करते लोगों को देखा । दुनिया में भगवान है, इसको भी जान गए।  कुछ डॉक्टर ने बता दिया कि हम है आप चिंता न करे तो यह भी पता चल गया कि कुछ तो दुख में भी सौदा कर लेते है और अपनी तिजोरी भर लेते है। सबसे ज्यादा मुश्किल का दौर जिसने देखा वो हमारे घरों के नन्हे मुन्ने ने देखा। वे पूरी तरह से घर मे बंद हो गए।  खिड़की या बालकोनी से भी डरते डरते बाहर झांकते दिखे।  खेलना औ...
2019 में लिखने का काम बहुत कम हुआ। लिखने की इच्छा तो रही, पर साल भर मानसिक दवाब में रही। लिखने का मौका नहीं मिला। उम्मीद करती हूँ नया साल लिखने के क्रम में बेहतर होगा।

बदल दो

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बदल दो बदल  दो, जल्दी बदल दो जल्दी, जल्दी बदल दो एक पल भी जायज न करो बदल दो, जल्दी बदल दो कपड़ा बदल दो, पर्दा  बदल दो बदल डालो हर कोना कहीं रह न जाए कोई छाप बदल दो बदल दो, जल्दी  बदल दो जल्दी जल्दी बदल दो कहीं देर न हो जाए बहुत कुछ बदलना है तुम्हें शुरू से लेकर अंत तक ऊपर से लेकर नीचे तक हर ओर, हर रंग तुम्हें बदलना है बदलने में माहिर बनो नहीं बदले तो तुम्हारी पहचान कैसे होगी तुम्हारा आकलन कैसे होगा इसलिए तुम बदल दो जल्दी जल्दी बदल दो बदलने के लिए जी-जान   लगा दो दिन-रात लगा दो जिंदगी भर की इच्छाएं जिंदगी भर के स्वप्न सब जल्दी जल्दी पूरे कर लो जल्दी जल्दी बदलते जाओ ऐसा बदलो कि तुम्हें  यकीन हो जाये कि  हाँ तुम बदल चुके हो और सबको भी बदल चुके हो अपनी रफ्तार बढ़ाओ अपनी चाल  बदल लो पर  बदल दो जल्दी जल्दी बदल दो कहीं ऐसा न हो कि तुम सब कुछ बदल भी नहीं पाये उसके पहले कहीं   कोई आहिस्ते से तुम्हें ही बदल दें उसके बाद...

पेजमेकर के रूप में मेरे अनुभव

मेरे पत्रकारिता कैरियर की शुरुआत खबरों के टाइपिंग और पेज बनाने से ही शुरू हुई। काम शुरू करने के पहले पेज बनाने के बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं थी। हाँ, चूंकि प्रकाशन का काम की थी इसलिए पेज सेटिंग जानती थी। लेकिन जब मैंने अखबार (न्यूमेंस महानगर) में पेज बनाने का कार्य संभाला, तो वो काम प्रकाशन के काम से बिल्कुल भिन्न था। संपादक डॉ. रुक्म जी के साथ काम कर खबरों और फीचरों का महत्व, उनका पेज के हिसाब से बंटवारा, लोकल पेज का महत्व और प्रथम पेज की खबरों का चयन जैसे बहुत कुछ उनसे सहज भाव से सीखने को मिला। सबसे बड़ी बात है कि बहुत ही अच्छे और शांत माहौल में उनके साथ काम करने को मिला। उस समय पेज पेजमेकर में बनाया जाता था। मैंने पेज बनाने की कला सांध्य दैनिक अखबार न्यूमेंस महानगर से ही सीखना शुरू किया। उसके बाद   2003 में जब मैं प्रभात खबर अखबार में डेस्क से जुड़ीं तो संपादक ओम प्रकाश अश्क सर से बहुत कुछ सीखने को मिला। अखबार जगत में पेज सज्जा भी एक कला है। वो हमेशा पेज को आकर्षक और नये रूप में सजाने के गुर बताते रहे   और मैं सीखती रही। सबसे ज्यादा काम मैंने प्रभात खबर में ही सीखा और क...

महिलाओं का अश्लील प्रदर्शन और समाज

महिलाओं का अश्लील प्रदर्शन के लिए मैं पूरी तरह से फिल्मी दुनिया को ही जिम्मेदार मानती हूँ। फिल्मों के साथ-साथ टीवी के विज्ञापन जगत में भी अश्लीलता बढ़ती जा रही है। एक मामूली-सी चीज के विज्ञापन के लिए एक सुंदर सी अभिनेत्री हो या सामान्य चेहरा अंग प्रदर्शन के लिए तैयार दिखती है। किसी भी चीज का विज्ञापन हो, शरीर जरूर दिखाया जाता है। फिल्मों में भी यही स्थिति है। कई सीनों को तो जबरन ठुंसा जाता है। माना जाता है कि इससे ज्यादा ख्याति होगी। लेकिन मेरा मानना इसके विपरीत है। मैं नहीं मानती हूँ कि अश्लीलता की ही वजह से आपको काम मिलेगा। वहीं दूसरी तरफ कॉमेडी कार्यक्रम में भी अश्लीलता दिखती है। शरीर की अश्लीलता के साथ-साथ  भाषाएँ की भी अश्लीलता बढ़ती जा रही है। कई बार ऐसे दिअर्थी शब्दों का प्रयोग हो जाता है, कि आँखें चुराने पड़ती है। अश्लील प्रदर्शन का असर समाज में तेजी से बढ़ता जा रहा है। स्कूल-कॉलेज में पढ़ने वाली लड़कियाँ सबसे ज्यादा प्रभावित होती है। आजकल फटे जीन्स का चलन चल रहा है। मैं तो इसे देखकर अवाक हो जाती हूँ। जहाँ एक तरफ लड़कियाँ पढ़ रही है, जागरूक हो रही है। जहाँ उन्हें अपने शरीर को ढ...

पुरुष तुम नमक हो

पुरुष तुम नमक हो हमारे घर के हमारे परिवार के हमारे समाज के पुरुष तुम नमक हो हमारे जीवन के हमारे सपने के हमारे बच्चों के पुरुष तुम नमक हो तुम्हारा होना उतना ही जरूरी है जितना सब्जी में नमक का होना नमकीन होना ही तुम्हारी गुणवत्ता है तुम्हारे बिना सबकुछ फीका है वैसे ही जैसे फीकी हो जाती है सब्जी नमक के बिना पर अगर तुम अधिक हो जाते हो तो भी जीवन बेस्वाद हो जाती है बिल्कुल सब्जी की तरह इसलिए तुम रहो, पर अपने दायरे में अपनी गरिमा में, अपने सीमा में क्योंकि तुम नमक हो पुरुष तुम नमक हो।