अरे ! मोटापा तुम कब जाओगे



अरे मोटापा ! तुम तो बड़े हठी हो। जिद्दी हो। कब से टिके हुए हो। अब तो तुम चले जाओ। मैंने तो तुम्हें कभी नहीं बुलाया। तुम तो पुराने जमाने के मेहमान की तरह हो, जो आ तो गये, टिक ही गये। जाने का नाम ही नहीं ले रहे हो। पहले लोगों के यहाँ मेहमान जाया करते थे, अब तो फेसबुक और व्हाट्अप का जमाना है। आजकल के बच्चे तो मेहमान शब्द ही नहीं जानते और ना मेहमान नामक चिड़िया को पहचानते हैं। और तुम तो बड़े बेशर्म निकले। जब नहीं आये थे, तो नहीं आये। और अब आ गये तो जाने का नाम ही नहीं ले रहे। जिंदगी का एक हिस्सा तो तुम बिल्कुल कट्टी थे। कितना अच्छा लगता था। हल्का-फुल्का शरीर। उछलने –कूदने वाला शरीर। पर एक समय के बाद लोगों ने टोकना शुरू कर दिया। अरे, तुम्हारे शरीर पर मांस क्यों नहीं चढ़ता। खाना तुम खाती हो, या खाना तुमको खाता है। अरे महिलाओं ने तो कानाफूसी भी शुरू कर दी कि लगता है इसको पेट भर खाना नहीं मिलता, देखो चारों ओर हड्डी ही हड्डी दिखती है। बहुत बड़े होने तक भी मैं रिक्शा में भैया-भाभी की गोदी में बैठकर ही जाती थी। सभी यही कहते थे, इसका क्या ये तो किसी भी कोने में बैठ जायेगी। कभी-कभी खराब लगता, तो कभी –कभी अपने दुबलेपन पर नाज होता। शादी के समय भी वहीं दुबला-पतला शरीर था। मुझे तो बड़ा अच्छा लगता था, लेकिन जो देखता वहीं कहता अरे बाबा इतनी दुबली। शरीर कैसा रुखा-सुखा दिखता है। लगता है जैसे भगवान ने उनकी बात सुन ली और बस कुछ सालों बाद ही मांस ऐसा चढ़ना शुरू किया, कि चढ़ता ही जा रहा है, चढ़ता ही जा रहा है। उतरने का नाम ही नहीं ले रहा है। बिल्कुल महंगाई की तरह। नेता की तरह। नेता जिस तरह कुर्सी से चिपक जाता है, ठीक वैसे ही मांस की परत-दर-परत चिपकती जा रही है और आयतन बढ़ाता जा रहा है। दूर से ही लोग मुझे देख कर हाय तौबा करते होंगे। सलवार सूट और कुर्ती तो इतनी तेजी से छोटी होती है, जैसे आजकल के समय में घरों में खुशी होती है। अच्छे-अच्छे डिजाइन वाली या स्टाइल वाली की बात तो दूर, कई दुकानदार तो पूछने पर सबसे पहले बोल देते हैं कि 'ना बाबा आपनार जने होबे ना'। अरे क्या मैं दुनिया में सबसे ज्यादा मोटी हो गई हूँ, कि मेरे लिए दुकान में सिले-सिलाये ड्रेस नहीं मिलते। मॉलो में भी कई बार डबल इक्सट्रा या इक्सट्रा इक्सट्रा लार्ज भी अटक जाता है। हाय राम मेरा मोटापा है या देश में फैला भ्रष्टाचार। जो कम होने का नाम ही नहीं ले रहा है। कई बार सोचती हूँ कि अगर मम्मी होती तो मेरे मोटापा कम करने के लिए व्रत, उपवास रख लेती और मैं स्लिम, स्लिम हो जाती। कितना मजा आता। लेकिन मैं …मैं … तो उपवास भी नहीं रख सकती। किसी तरह एक तीज व्रत कर लेती हूँ। जब दुबली थी, तो व्रत कर लिया करती थी। उस समय की बात ही कुछ और थी। अरे माँ से याद आया। मेरी सासु माँ के बारे में सुनी हूँ, वह बहुत दुबली पतली थी। पूरा परिवार ही दुबला-पतला था। वो कहती थीं कि मेरी बहुएँ मोटी-ताजी हो। जिससे घर भरा-भरा लगे। कहीं भगवान ने उनकी बात तो नहीं सुन ली। 
सब कहते हैं चावल मत खाओ, आलू मत खाओ, मिठाई और चीनी तो जानलेवा है। अरे बाबा आलू नहीं खाऊँ तो क्या खाऊं। क्या खाऊँ। यही सोच-सोच कर भूख बढ जाती है। फलों में आम मत खाओ। कभी आम खा लूँ तो लगता है जैसे कोई पाप कर रही हूँ। तो खाऊँ क्या, खीरा और पीने के लिए गर्म पानी। यह भी कोई खाने-पीने की चीज है। आज कल तो सेल्फी लेने में भी ध्यान रखती हूँ कि कहीं मोटापा नहीं दिख जाये। और कभी-कभार पूरी-की-पूरी फोटो खींची जाती है तो जल्दी ही डिलीट कर देती हूँ, क्योंकि मैं खुद अपनी फोटो देखकर डरने लगती हूँ। अरे मोटापा अब तो चले जाओ,  विमान से चले जाओ और लौट कर आने की मत सोचना। समझे...। नहीं तो खैर नहीं...।

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