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पुरुष दिवस : मेरे छोटेबाबु

आज पुरुष दिवस है। सोचा मेरे जीवन के किसी पुरुष के बारे में विस्तार से लिखा जाए। सोचते सोचते मैंने उनके बारे में लिखने का तय किया, जो मेरे पापा की तरह थे। पर पापा से भी ज्यादा प्यारे थे। गुस्सा करने में तो भैया से भी आगे थे, पर जब नरम पड़ते तो बिल्कुल बच्चे जैसे होते। कई बार तो उनसे डर लगता, तो कई बार वो मुझसे डर जाते। जी, वो मेरे चाचा थे। यानी मेरे पिता के भाई अर्थात् चाचा। जिन्हें हम भाई-बहन प्यार से छोटे बाबु कहा करते थे।    छोटे बाबु बिल्कुल सामान्य व्यक्ति थे। लंबा कद, मोटा शरीर और सांवला रंग। पर उनका व्यक्तित्व बहुत अच्छा था। वह सारी जिंदगी अपने भैया-भाभी के साथ गुजार दिये। वह कलयुग के लक्ष्मण थे। जहाँ एक तरफ पूरी ईमानदारी और मेहनत से पापा के मानव पत्रिका के कार्य में सहयोग निभाया करते थे, वहीं भाभी के एकमात्र देवर अपनी भाभी का हमेशा ख्याल रखा करते थे। भाभी अगर छठ पूजा का व्रत करती थी, तो देवर बड़ी श्रद्धा और लगन से छठ   पूजा का प्रसाद बनाने में साथ देते थे। जहाँ भाभी बीमार पड़ती, देवर उनकी सेवा के लिए तत्पर रहते। एक पल भी पीछे नहीं होते। वह कहते थे कि भाभी माँ बराबर...

विश यू हैप्पी बर्थ डे रेखा जी

रेखा। फिल्म अभिनेत्री रेखा। सिर्फ नाम ही काफी है। नाम लेते ही खूबसूरत चेहरा आँखों के सामने आ जाता है। वो रेखा, जिन्हें किस्मत से कुछ भी नहीं मिला। सब मिला मेहनत और लगन से। अपने अविवाहित माँ-पिता की संतान होने के दर्द के साथ ही 10 अक्टूबर यानी आज ही के दिन 1954 को इस धरती पर जन्म लीं। माँ –पिता दोनों ही तमिल फिल्मी दुनिया के थे। इन्होंने भी कई तमिल फिल्में भी कीं। उससे कुछ आगे बढ़ने का ख्वाब लेकर चलने वालीं रेखा ने 1970 में हिंदी फिल्म में कदम रखा। सावन भादो फिल्म से। जहाँ एक मोटी, बदसूरत लड़की दिखी। अगर वही रूप-रंग रह जाता तो रेखा वो रेखा नहीं बन पातीं। लेकिन इस बात को उन्होंने न केवल समझा, महसूस किया बल्कि कारगर साबित किया। योगा और खानपान से जहाँ खुद को इतना खूबसूरत बना लीं, मेकअप कर ऐसा जादू दिखाया जो आज तक बरकरार है। जहाँ भी अगर किसी समारोह में पहुँचतीं हैं तो साड़ी में खूबसूरत सा चेहरा दमकता रहता है। कम उम्र की हीरोइनों में भी इतनी चमक नहीं जितनी 64 उम्र में रेखा के चेहरे पर। और वो भी ऐसा चेहरा जो उन्हें जन्म से नहीं मिला, बल्कि कर्म से मिला। यह इंडस्ट्री किसी भी लड़की को लड़के और प्र...
बस केवल कृष्ण की ही कमी है बाकी तो भरे ही पड़े है समाज में धृतराष्ट्र भी दिख पड़े उस दिन बिहार में उनके साथ जरूर ही रहे होंगे भीष्म पितामह और दुर्योधन तो था ही अपने रंग में बस केवल कृष्ण की ही कमी है बाकी तो भरे ही पड़े है समाज में दुस्सासन तो चारों ओर दिख रहा था जो भैया के कहने पर सड़कों पर दौड़ रहा था बस केवल कृष्ण की ही कमी है बाकी तो भरे पड़े है समाज में कहीं दूर शकुनि भी बैठे मुस्कुरा रहे होंगे और अपनी कामयाबी पर इतरा रहे होंगे वाह क्या बात है बीत गये युग, पर नहीं बिता यहाँ का रीत आज भी महिलाओं को नंगे कर उन पर हमले कर पुरुष अपनी मर्दानगी दिखाते हैं बस केवल कृष्ण की ही कमी है बाकी तो भरे ही पड़े है समाज में
भीड़ बनना मुझे पसंद नहीं भीड़ बनकर मनमौजी करना पसंद नहीं मुझे पसंद नहीं चलती बस में आग लगा देना यह जाने बिना कि किसकी गलती से लगा है धक्का राहगीर को नहीं पसंद है मुझे मार-मार कर किसी को अधमरा कर देना नहीं है पसंद मुझे भीड़ बनकर टूट पड़ना ना समझे, ना जाने किसी पर आक्रोश निकालना मुझे नहीं पसंद है भीड़ बनकर तबाही मचाना भीड़ बनकर पथावरोध करना भीड़ बनकर किसी महिला को नग्न करना नग्न कर उस पर हमला करना नहीं है पसंद मुझे भीड़ बनकर बलात्कार पर बलात्कार करते रहना नहीं है पसंद मुझे भीड़ बनना भीड़ बनकर किसी भी रैली, समारोह के लिए निकल पड़ना भीड़ बनकर धक्का देना, धक्का देकर आगे बढ़ जाना भीड़ बनने से अच्छा है एकांत में खड़े रहना कोने में दुबके रहना अपने को भीड़ से बचाये रखना

अरे ! मोटापा तुम कब जाओगे

अरे मोटापा ! तुम तो बड़े हठी हो। जिद्दी हो। कब से टिके हुए हो। अब तो तुम चले जाओ। मैंने तो तुम्हें कभी नहीं बुलाया। तुम तो पुराने जमाने के मेहमान की तरह हो, जो आ तो गये, टिक ही गये। जाने का नाम ही नहीं ले रहे हो। पहले लोगों के यहाँ मेहमान जाया करते थे, अब तो फेसबुक और व्हाट्अप का जमाना है। आजकल के बच्चे तो मेहमान शब्द ही नहीं जानते और ना मेहमान नामक चिड़िया को पहचानते हैं। और तुम तो बड़े बेशर्म निकले। जब नहीं आये थे, तो नहीं आये। और अब आ गये तो जाने का नाम ही नहीं ले रहे। जिंदगी का एक हिस्सा तो तुम बिल्कुल कट्टी थे। कितना अच्छा लगता था। हल्का-फुल्का शरीर। उछलने –कूदने वाला शरीर। पर एक समय के बाद लोगों ने टोकना शुरू कर दिया। अरे, तुम्हारे शरीर पर मांस क्यों नहीं चढ़ता। खाना तुम खाती हो, या खाना तुमको खाता है। अरे महिलाओं ने तो कानाफूसी भी शुरू कर दी कि लगता है इसको पेट भर खाना नहीं मिलता, देखो चारों ओर हड्डी ही हड्डी दिखती है। बहुत बड़े होने तक भी मैं रिक्शा में भैया-भाभी की गोदी में बैठकर ही जाती थी। सभी यही कहते थे, इसका क्या ये तो किसी भी कोने में बैठ जायेगी। कभी-कभी खराब लगता, तो कभ...

कविता केवल कविता नहीं होती

कविता कविता केवल कविता नहीं होती वो तो होती है मन की अभिव्यक्ति मन का सुख मन का दुख कविता केवल कविता नहीं होती वो तो होती है दुख में बिल्कुल आपसे चिपकी हुई आंसू की तरह बहती रहती है कागजों पर रचती रहती है एक नया संसार कविता केवल कविता नहीं होती वो तो होती है अकेलेपन की साथी हाथ थामें रहती है रास्ता दिखाती रहती है कदम बढ़ाती रहती है कविता केवल कविता नहीं होती वह जख्म को भरने  का काम करती है कभी खोलकर तो कभी ढँक कर घाव ठीक करती है कविता केवल कविता नहीं होती वो तो रोशनदान होती है चारों ओर से बंद कमरे में भी हल्की रोशनी ला देती है और उम्मीद की नयी किरण जगा जाती है कविता केवल कविता नहीं होती वो तो पूरी जिंदगी होती है सारे रंगों से भरी होती है सारे ख्वाबों से भरी होती है कविता केवल कविता नहीं होती है

जानलेवा होता है भावना से भरा होना

अगर आपके घर में या आसपास ऐसा कोई बच्चा या बच्ची, जो भावनात्मक रूप से सोच रहा है/सोच रही है तो उसे तुरंत टोकिए और उसे एक बड़ी और गंभीर जानलेवा बीमारी से बचाने की कोशिश कीजिए। भावनात्मक रूप से सोचना अपने आप में एक बहुत ही खतरनाक बीमारी है। इस बीमारी में लड़के की तुलना में लड़किया   ज्यादा पीड़ित है, क्योंकि लड़कियाँ दिल से सोचती है। आज के समय में ऐसा नहीं है बहुत सारी लड़कियाँ दिल के बजाय परिस्थिति, स्थिति, और दिमाग से सोचने लगी है। पर ऐसी लड़कियाँ जो भावना से भरी पड़ी है, उसके लिए जीवन एक श्राप बराबर है। वह किसी के साथ भी मिक्स नहीं हो पाती। उसकी अपनी एक दुनिया बन जाती है। वह प्यार, दुलार और अपनेपन में हमेशा खोई रहती है। उसे नहीं मालूम कि वह जीते जी ही मरती रहती है। उसके अंदर परिस्थितियों से सामना करने की क्षमता दिन पर दिन    कम होती जाती है। ऐसी लड़कियाँ अपने लिए तो घातक ही होती है, लेकिन अपने परिवार, आसपास के लिए भी परेशानी का कारण बनती है। वह छोटी-छोटी चीजों में उलझी रहती है। वह अगर अपनी भावनाओं को सबके समक्ष रखें, तो कोई उसकी बातों को नहीं समझेगा। अगर वो अपनी बात...